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________________ २३२ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ( ५, ५, ३१ आवारयं कम्मं फासिदियईहावरणीयं । दिद-सुदाणभदत्थं मणेण अवगहिदूण एसो कि सम्वगओ असव्वगओ दुस्सहाओ अदुस्सहाओ ति परिक्खा णोइंदियगदईहा । तिस्से आवारयं कम्मं णोइंदियईहावरणीयं । एवमीहा छविवहा परूविदा। जं तं अवायावरणीयं णाम कम्मं तं छन्विहं ॥ ३१ ॥ छण्णामिदियाणं छविहईहापच्चरहितो समप्पज्जमाणत्तादो । ण च छ-ईहाहिंतो एगं कज्जमुप्पज्जदि, विरोहादो। तेसि छण्णं पि णामणिद्देसटुमुत्तरसुत्तं भणदि चक्खिदियअवायावरणीयं सोदिदियअवायावरणीयं घाणिदियअवायावरणीयं, जिभिदियअवायावरणीयं फासिदियअवायावरणीयं णोइंदियअवायावरणीय । तं सव्वं अवायावरणीयं णाम कम्म ।३२) चक्खिदियईहाणाणेण अवगलिंगावटुंभबलेण एगवियप्पम्मि उप्पण्णणिच्छओ चक्खिदियआवाओ णाम । तस्स आवारयं कम्मं चक्खि दियअवायावरणीयं । एवं सव्वेसिमवाया वरणीयाणं पुध पुध परूवणा जाणिदूण कायव्वा । जं तं धारणावरणीयं णाम कम्मं तं छन्विहं ॥ ३३ ॥ ईहावरणीय कर्म है । दृष्ट, श्रुत और अनुभूत अर्थको मनसे अवग्रहण कर यह क्या सर्वगत है, क्या असर्वगत है, क्या द्विस्वभाव है, या क्या अद्विस्वभाव है; इस प्रकारकी परीक्षा करना नोइंद्रियगत ईहा है। इसका आवारक कर्म नोइन्द्रिय-ईहावरणीय कर्म है । इस प्रकार छह प्रकारकी ईहाका कथन किया । जो अवायावरणीय कर्म है वह छह प्रकारका है । ३१ ॥ क्योंकि, छह इन्द्रियोंकी छह प्रकारकी ईहाके निमित्तसे इस ज्ञानकी उत्पत्ति होती है। छह प्रकारकी ईहाओंसे एक प्रकारके कार्यकी उत्पत्ति मानी नहीं जा सकती है, क्योंकि ऐसा मानने में विरोध आता है । अब उन छहोंका नामनिर्देश करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैं चक्षुइन्द्रियावायावरणीय कर्म, श्रोत्रेन्द्रियावायावरणीय कर्म, घ्राणेन्द्रियावायावरणीय कर्म; जिव्हेन्द्रियावायावरणीय कर्म, स्पर्शनेन्द्रियावायावरणीय कर्म और नोइन्द्रियावायावरणीय कर्म; यह सब आवायावरणीय कर्म है ॥ ३२॥ चक्षुइन्द्रियईहाज्ञानसे अवगत लिंगके बलसे एक विकल्प में उत्पन्न हुआ निश्चय चक्षुइन्द्रियअवाय और उसका आवारक कर्म चक्षुइन्द्रियअवायावरणीय कर्म है । इसी प्रकार सब अवायावरणीय कर्मोका जानकर अलग अलग कथन करना चाहिये। जो धारणावरणीय कर्भ है वह छह प्रकारका है ।। ३३ ॥ Oसे कि त अवाए? अवाए छविहे पण्णत्ते 1 तं जहा-सोइंदिअअवाए चविखंदिअअवाए घाणिदिअअवाए जिभिदिअअवाए फासिदिअअवाए नोइंदिअअवाए 1 नं. सू. ३३. प्रतिषु ' मवाया ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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