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छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
विवक्खियो मिस्सयं णाम । समसेडीए आगच्छमाणे सद्द-पोग्गले परघादेण अपराधादेण च सुणदि । तं जहा- जदि पराघादो पत्थि तो कंडुज्जुवाए गईए कण्णछिद्द पविट्ठे सह-पोग्गले सुणदि । पराघादे संते वि सुणेदि। कुदो? समसेडोदो परघादेण उस्सेडि गंतूण पुणो पराघादेण समसेडीए कण्णछिद्दे पविट्ठाणं सद्द-पोग्गलाणं सवणुवलंभादो। उस्सेडि गदसह-पोग्गले पुण परघादेणेव सुणेदि, अण्णहा तेसि सवणाणववत्तीदोए । एत्थ अण्णे आइरिया असद्द-पोग्गलेहि सह सुणेदि त्ति मिस्सपदस्सर अत्थं परूवेति । तण्ण घडदे, असह-पोग्गलाणं सोदिदियस्स अविसयाणं सवणाणुववत्तीदो* । असह-पोग्गले ण सुणेदि, सद्द-पोग्गले चेव सुणेदि, किंतु (असद्द पोग्गलसद्दे सुणेदि ति ण वोत्तुं सक्किज्जदे, तस्स अणुत्तसिद्धीदो कुदो? सव्वपोग्गलेहि) सव्वजीवरासीदो अणंतगुणेहि सव्वलोगो आउण्णो त्ति तंतजुत्तिसिद्धीए । उत्तं च
भासागदसमसेडि सदं जदि सुणदि मिस्सयं सुणदि ।
___ उस्से डिं पुण सदं सुणेदि णियमा पराघादे*।। ३ । एदस्स सोदिदियवंजणोग्गहस्स जमावारयं कम्मं तं सोदिदियवंजणोग्गहावरणीयं णाम।
__ समाधान- परघात और अपरघात इस प्रकार द्विसंयोगरूपसे विवक्षित पुद्गलमिश्र कहलाता है।
समश्रेणि द्वारा आते हुए शब्द-पुद्गलोंको परघात और अपरघात रूपसे सुनता है । यथा- यदि परघात नहीं है तो बाणके समान ऋजु गतिसे कर्णछिद्र में प्रविष्ट हुए शब्द-पुद्गलोंको सुनता है । परघातके होनेपर भी सुनता है क्योंकि, समश्रेणिसे परघात द्वारा उच्छेणिको प्राप्त होकर पुनः परघात द्वारा समश्रेणिसे कर्णछिद्र में प्रविष्ट हुए शब्द-पुद्गलोंका श्रवण उपलब्ध होता है । उच्छेणिको प्राप्त हुए शब्द-पुद्गल पुनः परघातके द्वारा ही सुने जाते हैं। अन्यथा उनका सुनना नहीं बन सकता है।
यहांपर दूसरे आचार्य अशब्द-पुद्गलोंके साथ सुनता है, ऐसा मिश्रपदका अर्थ कहते हैं । परन्तु वह घटित नहीं होता, क्योंकि अशब्द-पुद्गल श्रोत्रेन्द्रियके विषय नहीं होते; अतः उनका सुनना नहीं बन सकता है । अशब्द-पुद्गलोंको नहीं सुनता है, किन्तु शब्द-पुद्गलोंको ही सुनता है। इसलिये अशब्द शब्दपर्यायसे सहित पुद्गलोंके साथ शब्दपुद्गलोंको सुनता है, ऐसा बोलना ठीक नहीं है; क्योंकि यह विना कहे सिद्ध है । कारण कि सब पुद्गलोंसे जो कि सब जीवराशिसे अनन्तगुणे हैं, सब लोक आपूर्ण है, इस प्रकार आगम और युक्तिसे सिद्ध है । कहा भी है -
भाषागत समश्रेणिरूप शब्दको यदि सुनता है तो मिश्रको ही सुनता है । और उच्छेणिको प्राप्त हुए शब्दको यदि सुनता है तो नियमसे परघातके द्वारा सुनता है ।। ३ ।।
इस श्रोत्रेन्द्रिय व्यंजनावग्रहका जो आवारक कम हैं वह श्रोत्रेन्द्रियव्यंजनावग्रहावरणीय
अ-आ-काप्रतिषु ‘सरणाणुववत्तीदो', सुणेदिदो इति पाठ: ताप्रती · सर (व) गाणुववत्तीदो ' इति पाठःकाप्रती 'आइरिया असहपोग्गले ण सुणेदि सहपोग्गले मिस्सपदस्स ' इति पाठः* का-ताप्रत्योः 'समाणाणववत्तीदो ' इति पाठ:1* भासासमसेढीओ सई जं सुणइ मीसियं सुणइ 1 वीसेढी पूण सई सुणेइ णयमा पराघाए 11 नं. सू. गाथा ५. वि. भा. ३५१.
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