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________________ ५, ५, २६. ) पयडिअणुओगद्दारे आभिणिबोहियणाणावरणपरूवणा ( २२३ गच्छति । तं जहा-सद्दपज्जएण परिणदपदेसे अणंता पोग्गला अवट्ठाणं कुणंति । बिदियागासपदेसे तत्तो अणंतगणहीणा । तदियागासपदेसे अणंतगणहीणा । चउत्थागासपदेसे अणंतगुणहीणा । एवमणंतरोवणिधाए अणंतगुणहीणा होदूण गच्छंति जाव सव्वदिसासु वादवलयपेरंतं पत्ता ति। परदो किण्ण गच्छति ? धम्मात्थिकायाभावादोळा ण च सव्वे सद्द-पोग्गला एगसमएण चेव लोगत्तं गच्छंति ति णियमो, केसि पि दोसमए आदि कादूण जहणेण अंतोमुत्तकालेण लोगंतपत्ती होदि त्ति उवदेसादो। एवं समयं पडि सद्दपज्जाएण परिणदपोग्गलाणं गमणावडाणाणं परूवणा कायव्वा । उत्तं च पभवच्चुदस्स भागा वाणं णियमसा अणंता*दु। पढमागासपदेसे बिदियम्मि अणतगुणहीणा*।२। एत्थ गाहाए अत्थो वच्चदे-पभवच्चुदस्स भागा अणंता पढमागासपदेसे अवढाणं कुणंति ति संबंधो कायव्वो। एवमुप्पत्तिपदेसादो आगच्छमाणा पोग्गला जदि समसेडीए आगच्छंति तो मिस्सयं सुणदि। मिस्सयमिदि कि उत्तं होदि? परधादो अपरघादोच दुसंजोगेण प्रदेश में अनन्त पुद्गल अवस्थित रहते हैं। ( उससे लगे हुए) दूसरे आकाशप्रदेशमें उनसे अनन्तगुणे हीन पुद्गल अवस्थित रहते हैं। तीसरे आकाशप्रदेशमें उनसे अनन्तगुणे हीन पुद्गल अवस्थित रहते हैं। चौथे आकाशप्रदेशमें उनसे अनन्तगुणे हीन पुद्गल अवस्थित रहते हैं। इस तरह वे अनन्तरोपनिधाकी अपेक्षा वातवलय पर्यन्त सब दिशाओंमें उत्तरोत्तर एक एक प्रदेशके प्रति अनन्तगुणे हीन होते हुए जाते हैं । शंका - आगे क्यों नहीं जाते ? समाधान - धर्मास्तिकायका अभाव होनेसे वे वातवलयके आगे नहीं जाते हैं । ये सब शब्द-पुद्गल एक समयमें ही लोकके अन्त तक जाते है, ऐसा कोई नियम नहीं है । किन्तु ऐसा उपदेश है कि कितने ही शब्द-पुद्गल कमसे कम दो समयसे लेकर अन्तर्मुहर्त कालके द्वारा लोकके अन्तको प्राप्त होते हैं । इस तरह प्रत्येक समयमें शब्द पर्यायसे परिणत हुए पुद्गलोंके गमन और अवस्थानका कथन करना चाहिये । कहा भी है उत्पत्तिस्थानमें च्युत हुए पुद्गलोके अनन्त बहुभाग प्रमाण पुद्गल नियमसे प्रथम आकाशप्रदेश में अवस्थान करते हैं । तथा दूसरे आकाशप्रदेश में अनन्तगुणे हीन पुद्गल अवस्थान करते हैं । २। यहां गाथाका अर्थ कहते है- इस गाथाके पदोंका ‘पभवच्चुदस्स भागा अर्णता पढमागासपदेसे अवट्ठाणं कुणति ' ऐसा सम्बन्ध करना चाहिये। इस प्रकार उत्पत्तिप्रदेशसे आते हुए पुद्गल यदि समश्रेणि द्वारा आते हैं तो मिश्रको सुनता है । शंका - ‘मिश्र' ऐसा कहनेका क्या तात्पर्य है ? वाक्यमिदं नोपलभ्यते तातो. त. सू. १०-८ ताप्रतौ 'णियमसा (दो) अणंता' इति पाठ 10 अ-आ-काप्रतिषु ' अणंतगुणवाणा', ताप्रती 'अणंतगुणवा (ही) णा' इति पाठः 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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