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________________ ५, ५, १९. ) पर्या अणुओगद्दारे ठवणपय डिपरूवणा ( २०५ मट्टिया पयडी, धान तपणादीनं च जव-गोधूमा पयडी, सा सव्वा णोकम्मपवडी णाम ॥ १८ ॥ णोकम्मपग्रडीए अणेयविधत्तपटुप्पायणट्ठ सुत्तमिदमागयं । घडओ कलसो, पिढरो डेरओ सरावो, मल्लओ, अरंजणो अलिंजरो, उलुंचणो गडुवओ, एवमादीणं विविहमायण विसाण मट्टिया पयडी । कुदो ? मट्टियाए विणा सरावादीणमभावोवभादो । धाणालाया, तप्पणी सत्तुओ, एदेसि पयडी जव- गोधूमा च; जवधूमेह विणा धातपणाणुवलंभादो । एवं सामासियं काऊण अण्णेसि पि णोकम्मदव्वाणं पयडी परूवेदब्वा । जा सा थप्पा कम्मपयडी णाम सा अट्ठविहा-णाणावरणीयविशेषोंकी मिट्टी प्रकृति है । धान और तर्पण आदिको जौ और गेहूं प्रकृति है । यह सब नोकर्मप्रकृति है ॥ १८ ॥ 1 कर्म प्रकृति के अनेक भेदोंका कथन करनेके लिये यह सूत्र आया है । घट कलशको कहते हैं । पिढरका अर्थ डेरअ अर्थात् थाली है । सरावका दूसरा नाम मल्लक है । अरंजण कहो या अलिंजर एक ही अर्थ है । उलुंचण गडुवअको कहते हैं । इत्यादि विविध भाजनविशेषोंकी मिट्टी प्रकृति है, क्योंकि, मिट्टीके विना सराव आदिका अभाव देखा जाता है। धाणका अर्थ लाव है और तर्पण सक्तुको कहते हैं । इनकी प्रकृति जो और गेहूं है, क्योंकि, जौ और गेहूंके विना धाण और तर्पण ( सत्तु ) का अभाव देखा जाता है। इसे देशामर्शक समझकर अन्य भी नोकर्मद्रव्योंकी प्रकृति कहनी चाहिये । विशेषार्थ - यहां द्रव्यनिक्षेपके आगम और नोआगम ये दो भेद मुख्यतः श्रुतज्ञानकी प्रधानतासे किये गये हैं । इसलिये प्रकृतिआगमद्रव्यनिक्षेपका अर्थ प्रकृतिविषयक शास्त्रको जाननेवाला उपयोगरहित आत्मा होता है और नोआगमका अर्थ आगमद्रव्य अर्थात् पूर्वोक्त आत्मासे भिन्न अन्य पदार्थ क्या है और उसका यहां किस दृष्टिसे संग्रह करना इष्ट है, इस प्रश्नका यही उत्तर हैं कि आगमद्रव्यको भावरूप परिणत होनेमें जो साधन सामग्री लगती है वह सब आगमद्रव्य शब्दसे ली गई है। ऐसी साधन सामग्री क्या हो सकती हैं, जब इसका विचार करते हैं तो वह कर्म और कर्मसे अतिरिक्त अर्थात् नोकर्म यही दो तरह की सामग्री प्राप्त होती है । इस तरह इस दृष्टिसे द्रव्यनिक्षेपके ये भेद किये गये हैं । वैसे प्रत्येक द्रव्यकीं वर्तमान पर्याय अर्थात् भावकी अपेक्षा यदि द्रव्यनिक्षेपका विचार करते हैं तो विवक्षित पर्यायसे पूर्ववर्ती पर्यायविशिष्ट द्रव्य ही द्रव्यनिक्षेपका विषय ठहरता है । अन्यत्र नोआगमके तीन भेद करके एक भावी भेद भी परिगणित किया जाता है । वह भावी भेद इसी दृष्टिकोणको सूचित करता है और तत्तत् भावकी दृष्टिसे उसका द्रव्य यही ठहरता है । इस तरह द्रव्यनिक्षेप क्या है और उसके यहां किस दृष्टिसे भेद किये गये हैं इसका खुलासा किया | पहले जो नोआगमकर्मद्रव्यप्रकृति स्थगित कर आये थे वह आठ प्रकारकी है+ अ आ-काप्रतिषु ' दाण' इति पाठ: । अ-ताप्रत्यो गट्टुवओ', आप्रती ' गदुवओ' इति पाठः । आ-का-ताप्रतिषु ' आया' इति पाठ: 14 ताप्रती ' पयडी ( णं) ' इति पाठ: For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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