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२००) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
( ५, ५, ८१. भेदेहि जाणत्तमुवगए तदविरोहादो।
सद्दणओ णामपर्याडं भावपर्याडं च इच्छदि ॥ ८॥
दव्वाविणाभाविस्स णामणिक्खेवस्स कधं सद्दणए संभवो? ण, णामे दवाविणाभावे संते वि तत्थ दवम्हि तस्स सद्दणयस्स अत्थिताभावादो । सहवारेण पज्जायदुवारेण च अत्थभेदमिच्छंतए सद्दणए दो चेव णिक्खेवा संभवंति त्ति भणि होदि।
जा सा णामपयडो णाम सा जीवस्स वा, अजीवस्स वा जीवाणं वा, अजीवाणं वा, जीवस्स च अजीवस्स च, जीवस्स च अजीवाणं च, जीवाणं च अजीवस्स च, जीवाणं च अजीवाणं च जस्स णाम कीरदि पयडि त्ति सा सव्वा जामपयडी णाम ॥ ९॥
जं किंचि णामं तस्स एदे अट्ठ चेव भंगा आधारा होंति, एदेहितो पुधभूदस्स अण्णस्स णामाहारस्त अणवलंभादो । एदेसु अट्ठसु आधारेसु वट्टमाणो पयडिसहो णामपयडी णाम। कधमप्पाणम्हि पयडिसहो वट्टदे? न, अर्थाभिधान प्रत्ययास्तुत्यनामधेया इति शाब्दिकजनप्रसिद्धत्वाताएयस्स पयडिसहस्स अणेगेसु अत्थेसु वत्तिविरोहादो ण दुसंजोगादिमानने में कोई विरोध नहीं आता।
शब्द नय नामप्रकृति और भावप्रकृतिको स्वीकार करता है ॥ ८ ॥ शंका-नामनिक्षेप द्रव्यका अविनाभावी है । वह शब्दनयका विषय कैसे हो सकता है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि यद्यपि नाम द्रव्यका अविनाभावी है तो भी द्रव्यमें शब्दनयका अस्तित्व अर्थात् व्यवहार नहीं स्वीकार किया गया है । अतः शब्द द्वारा और पर्याय द्वारा अर्थभेदको स्वीकार करनेवाले शब्दनयमें दो ही निक्षेप सम्भव हैं, यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
नामप्रकृति यथा-एक जीव, एक अजीव, नाना जीव, नाना अजीव, एव जीव और एक अजीव, एक जीव और नाना अजीव, नाना जीव और एक अजीव, नाना जीव और नाना अजीव; इस प्रकार जिसका प्रकृति' ऐसा नाम करते हैं वह सब नामप्रकृति है ॥९॥
जो कुछ भी नाम है उसके ये आठ भंग ही आधार होते हैं, क्योंकि इनसे भिन्न अन्य कोई पदार्थ नामका आधार नहीं उपलब्ध होता । इन आठ आधारोंमें विद्यमान प्रकृति शब्द नामप्रकृति कहा जाता है ।
शंका-प्रकृति शब्दकी अपने में ही प्रवृत्ति कैसे होती है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि अर्थ, अभिधान और प्रत्यय ये तुल्य नामवाले होते हैं, ऐसा शाब्दिक जनोंमें प्रसिद्ध है ।
शंका-एक प्रकृति शब्दकी अनेक अर्थों में प्रवृत्ति मानने में चूंकि विरोध आता है, इसलिये द्विसंयोगी आदि भंग नहीं बन सकते ?
ताप्रतौ ' णाणत्तमुवगएहि ' इति पाठः ।
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