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________________ ५. ५, ७.) पयडिअणुओगद्दारे णयविभासणदा ( १९९ नैकगमो नैगमः, द्रव्य-पर्यायद्वयं मिथो विभिन्न मिच्छन् नैगम इति यावत् । लोकव्यवहारनिबन्धनं द्रव्यमिच्छन् पुरुषो व्यवहारनयः । व्यवहारमनपेक्ष्य सत्तादिरूपेण सकलवस्तुसंग्राहकः संग्रहनयः। एदे तिणि वि णया सव्वाओ पयडीओ इच्छंति, तिकाल गोयरत्तादो। उजुसुदो ट्ठवणपडि णेच्छवि ॥ ७ ॥ तस्स विसए सारिच्छलक्खणसामण्णाभावादो तं पिकुदो? एयत्तं मोत्तूण सारिच्छाणुवलंभादो। ण च कप्पणाए अण्णदव्वस्स सह एयत्तं होदि, तहाणुवलंभादो। तम्हा टवणप. यडि मोत्तूण उजसुदो णाम-दव-भावपयडीओ इच्छदि त्ति सिद्धं । कधं उजुसुदे पज्ज. वट्टिए दव्वणिक्खेवसंभवो ? ण, असुद्धपज्जवट्ठिए वंजणपज्जायपरतंते सुहमपज्जाय जो एकको नहीं प्राप्त होता वह नैगम है । जो द्रव्य और पर्याय इन दोनोंको आपसम अलग अलग स्वीकार करता है वह नैगम है, यह उक्त कथनका तात्पर्य है । लोकव्यवहारके कारणभूत द्रव्यको स्वीकार करनेवाला पुरुष व्यवहारनय है । व्यवहारकी अपेक्षा न करके जो सत्तादिरूपसे सकल पदार्थोंका संग्रह करता है वह संग्रहनय है। ये तीनों ही नय सब प्रकृतियोंको स्वीकार करते है, क्योंकि, त्रिकालगोचर पदार्थ इनका विषय है । विशेषार्थ-इन तीनों नयोंमें पर्यायकी प्रधानता न होनेसे नाम, स्थापना और द्रव्य निक्षेप इनके विषय बन जाते हैं । और पर्यायसे उपलक्षित द्रव्यका नाम भाव है, इसलिये भावनिक्षेप भी इनका विषय बन जाता है । इस प्रकार नामादि चारों प्रकारकी प्रकृतियोंको नैगम, संग्रह और व्यवहार ये तीनों नय विषय करते हैं यह सिद्ध होता है। ऋजुसत्र नय स्थापनाप्रकृतिको नहीं स्वीकार करता ॥ ७ ॥ क्योंकि, सादृश्यलक्षण सामान्य ऋजुसूत्र नयका विषय नहीं है। शंका-यह इसका विषय क्यों नहीं है ? समाधान-क्योंकि, एकत्वके विना सादृश्य नहीं उपलब्ध होता। यदि कहा जाय कि क्ल्पनाके द्वारा अन्य द्रव्यका अन्य द्रव्यके साथ एकत्व बन जायगा, सो भी बात नहीं है। क्योंकि इस तरहका एकत्व' उपलब्ध नहीं होता ।इसलिये स्थापनाप्रकृतिके सिवा ऋजसूत्र नय नाम, द्रव्य और भाव प्रकृतियोंको स्वीकार करता है। यह सिद्ध होता है । विशेषार्थ-दोमें सादृश्यलक्षण एकत्वका आरोप किये विना स्थापना बन नहीं सकती, परन्तु ऋजुसूत्रनय सादृश्यलक्षण सामान्यको विषय नहीं करता । यही कारण है कि स्थापनानिक्षेपको ऋजुसूत्र नयका विषय नहीं माना है । शंका-ऋजुसूत्र नय पर्यायाथिक है। उसका विषय द्रव्यनिक्षेप कैसे सम्भव है ? समाधान-नहीं, क्योंकि, जो व्यंजनपर्यायके आधीन है और जो सूक्ष्म पर्यायोंके भेदोंके आलम्बनसे नानात्वको प्राप्त है ऐसे अशुद्ध पर्यायाथिक नयका विषय द्रव्यनिक्षेप है, ऐसा * अ-आ-काप्रतिषु ' इच्छंति त्तिकाल-', ताप्रती · इच्छंति त्ति, काल-' इति पाठः 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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