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पयडिअणुयोगदारं
अरविंदगभग उरं ससुरहिगंधेण वासियदियंतं
पयडिअणुयोयमेय वोच्छं पउमप्पहं णमिउं । १ । पयडि त्ति तत्थ इमाणि पयडीए सोलस अणुओगद्दाराणि णावव्वाणि भवंति ॥१॥
प्रकृतिः स्वभावः शीलमित्यनर्थान्तरम्, तं परूवेदि ति अणुयोगद्दारं पि पयडी णाम उवयारेण । तत्थ पयडीए सोलस अणयोगद्दाराणि होति । अणुयोगद्दारेहि विणा पउिपरूवणा किण्ण कीरदे ? ण, अणुयोगद्दारेहि विणा सुहेण तदत्थावगमोवायाभा. वादो। तेसिमणुयोगद्दाराणं णामणिद्देसटुमुत्तरसुत्तं भणदि
पयडिणिक्खेवे पयडिणयविभासणदाए पयडिणामविहाणे पयडिबव्वविहाणे पयडिखेत्तविहाणे पयडिकालविहाणे पयडिभावविहाणे पयडिपच्चयविहाणे पयडिसामित्तविहाणे पयडि-पयडिविहाणे पयडिगदिविहाणे पयडिअंतर विहाणे पयडिसण्णियासविहाणे पयडिपरिमाण-- विहाणे पयडिभागाभागविहाणे पयडिअप्पाबहुए त्ति ॥ २॥
अरविन्दके गर्भके समान गौर अर्थात् लाल रंगवाले और अपनी सुरभि गन्धसे दसों दिशाओंको वासित करनेवाले पद्मप्रभ जिनको नमस्कार करके इस प्रकृतिअनुयोगद्वारका कथन करते हैं। १। प्रकृतिका अधिकार है। उसमें ये सोलह अनुयोगद्वार ज्ञातव्य हैं ॥१॥
प्रकृति. स्वभाव और शील ये एकार्थवाची शब्द हैं। चूंकि यह उसका प्ररूपण करता है इसलिये इस अनुयोगद्वारका भी नाम उपचारसे प्रकृति है । उस प्रकृतिके सोलह अनुयोगद्वार हैं।
शका- अनुयोगद्वारोंके विना प्रकृतिका कथन क्यों नहीं करते ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, अनुयोगद्वारोंके विना सुखपूर्वक उसके ज्ञान होने का कोई उपाय नहीं है।
___अब उन अनुयोगद्वारोंके नामोंका निर्देश करनेके लिये आगेका सूत्र कहते हैंप्रतिनिक्षेप, प्रकृतिनयविभाषणता, प्रकृतिनामविधान, प्रकृतिद्रव्यविधान, प्रकृति. क्षेत्रविधान, प्रकृतिकालविधान, प्रकृतिभावविधान, प्रकृतिप्रत्ययविधान, प्रकृतिस्वामित्वविधान, प्रकृति-प्रकृतिविधान, प्रकृतिगतिविधान, प्रकृतिअन्तरविधान, प्रकृतिसंनिकर्षविधान, प्रकृतिपरिमाणविधान, प्रकृतिभागामागविधान और प्रकृतिअल्पबहुत्व ।२।
ताप्रती पियडि ( अणं ) तर-' इति पाठः 1
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