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१९६ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खं
( ५, ४, ३१. सेसचोद्दसअणुयोगद्दाराणि एत्थ परूवेदव्वाणि । उवसंहारकारएण किमळं तेसि परूवणा ण कदा? | एस दोसो, कम्मस्स सेसाणयोगद्दारेहि परूवणाए कोरमाणाए पुणरुत्तदोसो पसज्जदि ति तदपरूवणादो । महाकम्मपयडिपाहुडे किमळं तेहि अणुयोगद्दारेहि तस्स परूवणा कदा? ण, मंदमेहाविजणाणग्गहढें पयदपरूवणाए पुणरुत्तदोसाभावादो। ण च अपुणरुत्तस्सेव कत्थ वि परूवणा अस्थि, सव्वत्थ. पुणरुत्तापुणरुत्तपरूवणाए चेव उवलंभादो।
एवं कम्मे त्ति समत्तमणुओगद्दारं ।
शंका-शेष चौदह अनुयोगद्वार यहां कहने चाहिये। उपसंहार करनेवालेने उनका कथन किसलिये नहीं किया है ?
___ समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, कर्मका शेष अनुयोगद्वारों के द्वारा कथन करनेपर पुनरुक्त दोष आता है, इसलिये उनका कथन नहीं किया है।
शंका-महाकर्मप्रकृतिप्राभृतमें उन अनुयोगोंके द्वारा उसका कथन किसलिये किया है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, मन्दबुद्धि जनोंका उपकार करनेके लिये प्रकृत प्ररूपणा करनेपर पुनरुक्त दोष नहीं प्राप्त होता । अपुनरुक्त अर्थकी ही कहींपर प्ररुपणा होती है, ऐसा नहीं है; क्योंकि, सर्वत्र पुनरुक्त और अपुनरुक्त प्ररूपणा ही उपलब्ध होती है ।
इस प्रकार कर्म अनुयोगद्वार समाप्त हुआ।
काप्रती 'सेस' इत्येतत्पदं नोपलभ्यते । 4 अप्रती सव्वत्थ सव्वत्थं', काप्रती 'सम्वत्थ सव्वत्थ ' ताप्रती 'सव्वत्थ ( सव्वत्यं-)' इति पाठः।
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