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________________ ५, ४, ३१. ) कम्माणुओगद्दारे पओअकम्मादीणं अप्पाबहुअं ( १९५ भवियाणुवादेण अभवसिद्धिएसु सव्वत्थोवाओ पओअकम्म-समोदाणकम्मदव्वटुदाओ पओअकम्मपदेसट्टदा असंखेज्जगुणा । आधाकम्मदव्वदा अणंतगुणा । तस्सेव. पदेसट्टदा अणंतगुणा। समोदाणकम्मपदेसट्टदा अणंतगुणा । समत्ताणुवादेण वेदगसम्माइट्ठीसु सम्वत्थोवा तवोकम्मदवट्टदा। पओअकम्म-समोदाणकम्म-किरियाकम्मदव्वटुदाओ असंखेज्जगुणाओ। तवोकम्मपदेसट्टदा असंखेज्जगुणा । पओअकम्म किरियाकम्मपदेसट्टदाओ असंखेज्जगुणाओ। आधाकम्मदव्वट्ठदा अणंतगुणा। तस्सेव पदेसट्टदा अणंतगुणा । समोदाणकम्मपदेसट्टदा अणंतगुणा। व सण्णी व असणीसु सम्वत्थोवाओ इरियावथकम्म-पओअकम्मदव्वदाओ। समोदाणकम्म-तवोकम्मदव्वट्ठदाओ विसेसाहियाओ । पओअकम्मपदेसट्टदा असंखेज्जगुणा । तवोकम्मपदेसट्टदा विसेसाहिया। आधाकम्मदव्वटदा अणंतगणा । तस्सेव पदेसट्ठदा अणंतगुणा । इरियावहकम्मपदेसट्टदा अणंतगुणा। समोदाणकम्मपदेसट्टदा विसेसाहिया । एवं दव्वटु-पदेसटुप्पाबहुअं समत्तं । असंबद्धमिदमप्पाबहुअं, सुत्तामावादो? ण एस दोसो, देसामासियसुत्तेण पुव्वपरूविदेण सूचिदत्तादो । एवं कम्मणिक्खेवे ति समत्तमणुयोगद्दारं । ___ भव्यमार्गणाके अनुवादसे अभव्योंमें प्रयोगकर्म और समवधानकर्मकी द्रव्यार्थता सबसे स्तोक है । इनसे प्रयोगकर्मको प्रदेशार्थता असंख्यातगुणी है । इससे अधःकर्मकी द्रव्यार्थता अनन्तगुणी है । इससे उसीकी प्रदेशार्थता अनन्तगुणी है। इससे समवधानकर्मकी प्रदेशार्थता अनन्तगुणी है । सम्यक्त्वमार्गणाके अनुवादसे वेदकसम्यग्दृष्टियोंमें तपःकर्मकी द्रव्यार्थता सबसे स्तोक है। इससे प्रयोगकर्म, समवधानकर्म और क्रियाकर्मकी द्रव्यार्थता असंख्यातगुणी है । इससे तपःकर्मकी प्रदेशार्थता असंख्यातगुणी है । इससे प्रयोगकर्म और क्रियाकर्मकी प्रदेशार्थता असंख्यातगुणी है । इससे अधःकर्मकी द्रव्यार्थता अनन्तगुणी है । इससे उसीकी प्रदेशार्थता अनन्तगुणी है । इससे समवधानकर्मकी प्रदेशार्थता अनन्तगुणी है । न संज्ञी न असंज्ञी जीवोंमें ईर्यापथकर्म और प्रयोगकर्म द्रव्यार्थता सबसे स्तोक है । इससे समवधानकर्म और तपःकर्मकी द्रव्यार्थता विशेष अधिक है । इससे प्रयोगकर्मकी प्रदेशार्थता असंख्यातगुणी है । इससे तपःकर्मकी प्रदेशार्थता विशेष अधिक है इससे अध:कर्मकी द्रव्यार्थता अनन्तगुणी है। इससे उसीकी प्रदेशार्थता अनन्तगुणी है। इससे ईपिथकर्मकी प्रदेशार्थता अनन्तगुणी है। इससे समवधानकर्मकी प्रदेशार्थता विशेष अधिक हैं। इस प्रकार द्रव्य-प्रदेशार्थता अल्पबहुत्व समाप्त हुआ। शंका-यह अल्पबहुत्व असम्बद्ध है, क्योंकि, इसका प्रतिपादक सूत्र नहीं उपलब्ध होता ? समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, पहले कहे गये देशामार्शक सूत्रसे इसकी सूचना मिलती है। इस प्रकार कर्मनिक्षेप अनुयोगद्वार समाप्त हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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