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________________ ५, ४, ३१. ) कम्माणुओगद्दारे पओअकम्मादीणं अप्पाबहुअं ( १९३ कसायाणुवादेण चदुण्णं कसायाणं णवंसयवेदभंगो । अकसाईणमवगदवेदभंगो। णवरि इरियावथ-पओअकम्मदव्वदाओ सरिसाओ। णाणाणुवादेण आभिणि-सुदओहिणाणीसु सव्वत्थोरा इरियावहकम्मदव्वदा। तवोकम्मदवढदा संखेज्जगणा । किरियाकम्मदव्वदा असंखेज्जगणा। पओअकम्म-समोदाणकम्मदव्वट्टदाओ दो वि सरिसाओ विसेसाहियाओ। तवोकम्मपदेसट्टदा असंखेज्जगुणा। किरियाकम्मपदेसट्टदा असंखेज्जगुणा । पओअकम्मपदेसट्टदा विसेसाहिया । केत्तियमेत्तेण? असंखेज्जलोगेहि । आधाकम्मदव्वदा अणंतगुणा । तस्सेव पदेसटुदा अणंतगुणा। इरियावथकम्मपदेसट्टदा अणंतगुणा । समोदाणकम्मपदेसटुदा असंखेज्जगुणा । एवमोहिदंसणि-सुक्कलेस्सियसम्माइटि-खइयसम्माइट्ठि-उवसमसम्मादिट्ठीसु । णवरि सम्माइट्ठि-खइयसम्माइट्ठीसु पओअकम्मदव्वट्टाए उवरि समोदाणकम्मदव्वदा विसेसाहिया। मणपज्जवणाणीसु सव्वत्थोवा इरियावहकम्मदव्वद्वदा । किरियाकम्मदव्वदा संखेज्जगुणा । पओअकम्म-समोदाणकम्म-तवोकम्मदव्वदृदाओ विसेसाहियाओ। किरियाकम्मपदेसट्टदा असंखेज्जगुणा । पओअकम्म-तवोकम्मपदेसट्टदाओ विसेसाहियाओ। आधाकम्मदवटुदा अणंतगणा। तस्सेव पदेसट्टदा अणंतगुणा। इरियावथकम्मपदेसट्टदा कषायमार्गणाके अनुवादसे चारों ही कषायवालोंका कथन नसकवेदके समान है। कषायरहित जीवोंका कथन अपगतवेदके समान है । इतनी विशेषता है कि इनके ईर्यापथकर्म और प्रयोगकर्मकी द्रव्यार्थता समान है। ज्ञानमार्गणाके अनुवादसे आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें ईर्यापथकर्मकी द्रव्यार्थता सबसे स्तोक है । इससे तपःकर्मकी द्रव्यार्थता संख्यातगुणी है। इससे क्रियाकर्मकी द्रव्यार्थता असंख्यातगुणी है। इससे प्रयोगकर्म और समवधानकर्म इन दोनोंकी द्रव्यार्थता समान होकर विशेष अधिक है। इसके तपःकर्मकी प्रदेशार्थता असंख्यातगुणी है। इससे क्रियाकर्म की प्रदेशार्थता असंख्यातगुणी है । इससे प्रयोगकर्मकी प्रदेशार्थता विशेष अधिक है। कितनी अधिक है ? असंख्यात लोककी जितनी प्रदेशसंख्या हो उतनी अधिक है। इससे अधःकर्मकी द्रव्यार्थता अनन्तगुणी है। इससे उसीकी प्रदेशार्थता अनन्तगुणी हैं । इससे ईर्यापथकर्मकी प्रदेशार्थता अनन्तगुणी है। इससे समवधानकर्मकी प्रदेशार्थता असंख्यातगुणी है । इसी प्रकार अवधिदर्शनी, शुक्ललेश्यावाले, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि और उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिये। इतनी विशेषता है कि सम्यग्दृष्टि और क्षायिकसम्यग्दष्टि जीवोंमें प्रयोगकर्मकी द्रव्यार्थतासे समवधानकर्मकी द्रव्यार्थता विशेष अधिक है। मनःपर्ययज्ञानी जीवोंमें ईर्यापथकर्मकी द्रव्यार्थता सबसे स्तोक है । इससे क्रियाकर्मकी द्रव्यार्थता संख्यातगुणी है। इससे प्रयोगकर्म, समवधानकर्म और तपःकर्मकी द्रव्यार्थता विशेष अधिक है। इससे क्रियाकर्मकी प्रदेशार्थता असंख्यातगणी है। इससे प्रयोगकर्म और तपःकर्मकी प्रदेशार्थता विशेष अधिक है। इससे अधःकर्मकी द्रव्यार्थता अनन्तगुणी है। इससे उसीकी प्रदेशार्थता अनन्तगुणी है। इससे ईर्यापथकर्मकी प्रदेशार्थता अनन्तगुणी है। इससे समवधान www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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