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________________ ५, ४ , ३१ ) कम्माणुओगद्दारे पओअकम्मादीणं अप्पाबहुअं (१८७ तवोकम्मपदेसद्वदा । किरियाकम्मपदेसट्टदा पओअकम्मपदेसटुदा असंखेज्जगुणा । आधाकम्मपदेसट्टदा अणंतगुणा । समोदाणकम्मपदेसट्टदा अणंतगुणा । एवं पदेस?दप्पाबहुअं समत्तं । दवट्ठ-पडेसटुद पाबहुगाणुगमेण दुविहो णिद्देसो अघेण आदेसेण य । ओघेण सम्वत्थोवा इरियावहकम्मदबटुदा । तवोकम्मदबटुदा संखेज्जगुणा । किरियाकम्मदव्वदा असंखेज्जगणा । तवोकम्मपदेसद्वदा असंखेज्जगुणा । को गुणगारो? लोगस्स असंखेज्जदिभागो*। किरियाकम्मपदेसट्टदा असंखेज्जगुणा । को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागस्स संखेदिभागो । आधाकम्मदबट्टदा अणंतगुणा । को गणगारो अभवसिद्धिएहि अणंतगणोर-सिद्धाणमणंतिमभागमेत्तवग्गणाणमसंखेज्जदिभागो। तस्सेव पदेसवा अणंतगणा । को गणगारो ? अभवसिद्धिएहि अणंतगुणो सिद्धाणमणंतिमभागो। कुदो? एक्के किस्से वग्गणाए अणंतेहि परमाणूहि विणा उप्पत्तीए अभावादो। इरियावथकम्मपदेसट्टदा अणंतगणा । कुदो? 'अनन्तगुणे परे' इति तत्त्वार्थसूत्र निर्देशात् । पओअकम्मदव्वटदा अणंतगुणा । को गुणगारो। संसारिजीवाणमणंतिमभागो। समोदाणकम्मदवढदा विसेसाहिया । केत्तियमेत्तेण? अजोगिमेत्तेण । पओअकम्मपदेसटुता असंखेज्जगुणा। को गुणगारो? किचूणो घणलोगो। कुदो ? एक्केक्कस्स जीवस्स घणलोगमेत्तजीवपदेसाणमुवलंभादो। समोदाणप्रदेशार्थता असंख्यातगुणी है । इससे अधःकर्मकी प्रदेशार्थता अनन्तगुणी है । इससे समवधानकर्मकी प्रदेशार्थता अनन्तगुणी है । इस प्रकार प्रदेशार्थता अल्पबहुत्व समाप्त हुआ। द्रव्य-प्रदेशार्थता-अल्पबहुत्व अनुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओध और आदेश । ओघसे ईर्यापथकर्मकी द्रव्यार्थता सबसे स्तोक है। इससे तपःकर्मकी द्रव्यार्थता संख्यातगुणी है। इससे क्रियाकर्मकी द्रमार्थता असंख्यातगुणी है । इससे तपःकर्मकी प्रदेशार्थता असंख्यातगुणी है। गुणकार क्या है ? लोकका असंख्यातवां भाग गुणकार है। इससे क्रियाकर्मकी प्रदेशार्थता असंख्यातगुणी है । गुणकार क्या है ? पल्योपमके असंख्यातवें भागका संख्यातवां भाग गुणकार है । इससे अधःकर्म की द्रव्यार्थता अनन्तगुणी है । गुणकार क्या है ? अभव्योंसे अनन्तगुणी और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण वर्गणाओंका असंख्यातवां भाग गुणकार है । इससे इसीकी प्रदेशार्थता अनन्तगुणी है । गुणकार क्या है ? अभव्योंसे अनन्तगुणा और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण गुणकार हैं, क्योंकि, एक एक वर्गणाकी अनन्त परमाणुओंके विना उत्पत्ति नहीं हो सकती । इससे ईर्यापथकर्मकी प्रदेशार्थता अनन्तगुणी है, क्योंकि, तैजस और कार्मण शरीर उत्तरोत्तर अनन्तगुणे होते हैं ' एसा तत्त्वार्थसूत्र में निर्देश किया है । इससे प्रयोगकर्मकी द्रव्यार्थता अनन्तगुणी है । गुणकार क्या है ? संसारी जीवोंका अनन्तवां भागप्रमाण गुणकार है। इससे समवधानकर्मकी द्रव्यार्थता विशेष अधिक है । कितनी अधिक है ? अयोगियोंकी जितनी संख्या है उतनी अधिक है । इससे प्रयोगकर्मकी प्रदेशार्थता असंख्यातगुणी है। गुणकार क्या है ? कुछ कम घनलोकप्रमाण गुणकार है, क्योंकि, एक एक जीवके घनलोक प्रमाण जीवप्रदेश पाये जाते का-ताप्रत्यो किरियाकम्मप० पओअकम्मप.' इति पाठः । ताप्रती । दन्वपदेसदइति पाठः। * काप्रती ' असंखेगुणा ' इति पाठः 14 काप्रती ' -कम्मदव्वदा'. ताप्रती · कम्मदव. ( पदे० ) ' इति पाठः 10 प्रतिषु ' अणंतगुणो' इति पाठः ) For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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