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________________ १७६ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ( ५, ४, ३१. गुणा । को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागस्स संखेज्जदिभागो । आधाकम्मदव्वदा अनंतगुणा । को गुणगारो ? अभवसिद्धिएहि अनंत गुण सिद्धाणमणंतभागमेत्तवग्गणाणमसंखेज्जदिभागो । पओअकम्मदव्वट्टदा अनंतगुणा । को गुणगारो ? संसारत्थसव्वजीवरासीए अनंतिमभागो । समोदाणकस्मदव्वदा विसेसाहिया । केत्तियमेत्तेण ? अजोगीजीवमेत्तेण । एवं भवसिद्धियाणं वत्तव्वं । कायजोगि. ओरालियकायजोगि अचक्खुदंसणीणमेवं चेव वत्तव्वं । णवरि आधाकम्मस्सुवरि पओअकम्मसमोदानकम्माणि दो वि सरिसाणि अनंतगुणाणि । आदेसेण गदियाणुवादेण णिरयगदीए णेरइएसु सव्वत्थोवा किरियाकम्मदव्वgar | पओअकम्म- समोदाणकम्माणं दव्वट्ठदाओ दो वि सरिसाओ असंखेज्जगुणाओ । एवं सत्तसु पुढवी । पंचिदिर्यात रिक्खतिगस्स एवं चेव । णवरि पओअकम्म-समोदाकम्माण दव्वदाए उवरि आधाकम्मस्स दव्वदा अनंतगुणा । तिरिक्खगदीए तिरिक्खेसु सव्वत्थोवा किरिया कम्मदव्वद्वदा । आधाकम्मदव्वअनंतगुणा । ओअकम्म समोदाणकम्माणं दव्वट्टदाओ अनंतगुणाओ । एवमसंजद- तिण्णिलेस्साणं वत्तव्वं पंचिदियतिरिक्खअपज्जतएसु सव्त्रत्थोवाओ पओअकम्मसमोदाणकम्मदव्वदाओ । आघाकम्मदव्वटुदा अनंतगुणा । एवं मणुस अपज्जतपल्योंपमके असख्यातवें भागका संख्यातवां भाग गुणकार है । अधः कर्म की द्रव्यायता अनन्तगुणी है | गुणकार क्या है ? अभव्योंसे अनन्तगुणी और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण वर्गणाओंके असंख्यातवें भागप्रमाण गुणकार है । प्रयोगकर्म की द्रव्यार्थता अनन्तगुणी है । गुणकार क्या है ? संसारमें स्थित सब जीवराशिके अनन्तवें भागप्रमाण गुणकार है । समवधानकर्म की द्रव्यार्थता विशेष अधिक है । कितना अधिक है? अयोगी जीवोंका जितना प्रमाण है उतनी अधिक है । इसी प्रकार भव्य जीवोंके कहना चाहिये । काययोगी, औदारिककाययोगी और अचक्षुदर्शनवाले जीवोंके भी इस प्रकार कहना चाहिये । इतनी विशेषता है कि इनके अधःकर्म की द्रव्यार्थतासे प्रयोगकर्म और समवधानकर्म दोनों ही समान होकर अनन्तगुणे है । आदेश से गतिमार्गणात्रे अनुवादसे नरकगति में नारकियों में क्रियाकर्म की द्रव्यार्थता सबसे स्तोक हैं | इससे प्रयोगकर्म और समवधानकर्म की द्रव्यार्थता दोनों ही समान होकर असंख्यात - गुणी है। इसी प्रकार सातों पृथिवियों में जानना चाहिये । पचेन्द्रिय तिर्यंचत्रिकके भी इस प्रकार जानना चाहिये | इतनी विशेषता है कि इनके प्रयोगकर्म और समवधानकर्म की द्रव्यार्थता से अधः कर्म की द्रव्यार्थता अनन्तगुगी है । तिर्यंचगतिमें तिर्यंचों में क्रियाकर्मकी द्रव्यार्था सबसे स्तोक है । इससे अधःकमंकी द्रव्याता अनन्तगुणी है । इससे प्रयोगकर्म और समवधानकर्म की द्रव्यार्थतायें अनन्तगुणी है । इसी प्रकार असंयत और तीन अशुभ लेश्यावाले जीवोंके कहना चाहिये । पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्तकों में प्रयोगकर्म और समवधानकर्मकी द्रव्यार्थतायें सबसे स्तोक हैं। इससे अधःकर्मंकी द्रव्यार्थता अनन्तगुणी है । इसी प्रकार मनुष्य अपर्याप्त सब विकलेन्द्रिय अ-आ-का-प्रतिषु 'अनंतगुणा' ताप्रतौ ' अनंतगुणो ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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