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________________ ५, ४, ३१. ) कम्माणुओगद्दारे पओअकम्मादीणं अंतरपरूवणा ( १६९ णवरि इरिथावहकम्मस्स एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमहत्तं । उक्कस्सेण तेत्तीससागरोवमाणि देसूणबेपुव्वकोडीहि सादिरेयाणि । तं जहा- एक्को देवो वा रइओ वा चउवीससंतकम्मियो सम्माइट्ठीसु पुवकोडाउएसु मणुस्सेसु उववण्णो । गब्भादिअट्ठवस्साणमुवरि दंसणमोहणीयं खविय अप्पमत्तभावेण संजमं पडिवण्णो । पुणो पमत्तो जादो। तदो पमत्तापमत्तपरावत्तसहस्सं कादूण अपुटवो अणिपट्टी सुहुमो होदूण उवसंतकसाओ जादो। इरियावहकम्मस्स आदी विट्ठा । तदो सुहुमो होदूण अंतरिय तेत्तीसाउटिदिएसु देवेसुववज्जिय पुत्वकोडाउएसु मणुस्सेसववण्णो । पुणो पुवकोडीए सव्वत्थोवअंतोमहुत्तावसेसे खीणकसाओ जादो । लद्धमंतरं । एवमेक्कारसतोमुहुत्तम्भहियअटुवस्सेहि ऊणबेपुव्दकोडीहि सादिरेयाणि तेत्तीससागरोवमाणि इरियावहकम्मस्स उक्कस्संतरं। आधाकम्मस्स उक्कस्संतरं* केवचिरं कालादो होदि? णाणाजीवं पडुच्च पत्थि अंतरं । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ। उक्कस्सेण तेत्तीससागरोवमाणि देसूण (दो) पुव्वकोडीहि साबिरेयाणि । तं जहा- एक्को देवो (वा) रहयो वा च उवीससंतकम्मियो पुस्यकोडाउएस मणुस्सेस उववण्णो । गम्भादिअदुवस्साणमुवरि तिणि वि करणाणि कादूण खइयसम्माइट्ठी जादी। तस्स खइयसम्माइटिस्स पढमसमए (जे) णिज्जिण्णा ओरालियपरमाण तेसि बिदियसमए आदी होदि । तदियसमयप्पहुडि देसूणपुवकोडिमेतंतरं काऊण तेत्तीससागरोवमाउ कि ईपिथकर्मका एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहुर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम दो पूर्वकोटि अधिक तेतीस सागर है । यथा चौबीस प्रकृतियोंकी सत्तावाला एक देव या नारकी जीव पूर्वकोटिकी आयुवाले सम्यग्दृष्टि मनुष्योंमें उत्पन्न हुआ। गर्भसे लेकर आठ वर्षका होनेपर दर्शनमोहनीयका क्षय करके अप्रमत्तभावके साथ संयमको प्राप्त हुआ। अनन्तर प्रमत्त हुआं। अनन्तर प्रमत्त और अप्रमत्त गुणस्थानके हजारों परावर्तन करके अपूर्वकरण अनिवृत्तिकरण और सूक्ष्मसांपराय होकर उपशांतकषाय हो गया । इसके ईर्यापथकर्मकी आदि दिखाई दी । अनन्तर सूक्ष्मसांपराय होकर और अन्तर करके तेत्तीस सागरकी आयुवाले देवोंमें उत्पन्न हुआ और वहांसे च्युत होकर पूर्वकोटि आयुवाले मनुष्योंमें उत्पन्न हुआ । पुनः पूर्वकोटिमें सबसे स्तोक अन्तर्मुहुर्त काल शेष रहनेपर क्षीणकषाय हो गया । अन्तरकाल उपलब्ध हो गया। इस प्रकार ग्यारह अन्तर्मुहूर्त अधिक आठ वर्ष न्यून दो पूर्वकोटि अधिक तेतीस सागर ईर्यापथकर्मका उत्कृष्ट अन्तरकाल होता है । अधःकर्मका उत्कृष्ट अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम दो पूर्वकोटि अधिक तेतीस सागर है। यथा-चौबीस प्रकृतियोंकी सत्तावाला एक जीव या नारकी जीव पूर्वकोटिकी आयुवाले मनुष्योंमें उत्पन्न हुआ । गर्भसे लेकर आठ वर्षका होने पर तीनों ही करणोंको करके क्षायिकसम्यग्दृष्टि हो गया। उस क्षायिकसम्यग्दृष्टि प्रथम समयमें जो औदारिक परमाणु निर्जीर्ण हुए उनकी अपेक्षा दूसरे समयमें अधःकर्मकी आदि होती है और तीसरे समयसे लेकर कुछ कम पूर्वकोटि काल मात्र अन्तर करके तेतीस सागरकी *ताप्रती — उक्कस्संतरं ( अंतरं ) ' इति पाठः 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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