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________________ १६८ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ( ५, ४, ३१. समाणो मणुस्सेसु उववण्णो। तदो सव्वदीहंतोमुहुत्तसुक्कलेस्साकालचरिमसमए पुव्वणिज्जिण्णणोकम्मक्खंधेसु बंधमागदेसु आधाकम्मस्स लद्धमंतरं। एवं तिसमऊणबेअंतोमहत्तब्भहियतेत्तीससागरोवमाणि आधाकम्मस्स उक्कस्संतरं । किरियाकम्मरस अंतरं केवचिरं कालादो होदि ? गाणाजीवं पडुच्च णस्थि अंतरं । एगजीवं पडुच्च जहणण अंतोमहत्तं । उक्कस्सेण एक्कत्तीस सागरोवमाणि पंचहि अंतोमुत्तेहि ऊणाणि । तं जहा-एक्को अट्ठावीससंतकम्मियो दवलिंगी उवरिम-उवरिमगेवज्जदेवेसु उववण्णो । छहि पज्जत्तीहि पज्जत्तयदो विस्संतो विसुद्धो वेदगसम्मत्तं पडिवण्णो। किरियाकम्मस्स आदी विट्ठा । तदो सम्वत्थोवकालं किरियाकम्मेण अच्छिदूण मिच्छत्तं गदो अंतरिदो । तदो सव्वत्थोवावसेसे जीविदव्वए* उवसमसम्मत्तं पडिवण्णो। किरियाकम्मस्स लद्धमंतरं। एवं पंचहि अंतोमुत्तेहि ऊणाणि एक्कत्तीसं सागरोवमाणि किरियाकम्मस्स उक्कस्सं अंतरं। अलेस्सियाणं तवोकम्मरस अंतरं केवचिरं कालादो होदि? णाणाजीवं पड़च्च जहण्णेण एगसमओ। उक्कस्सेण छम्मासा। एगजीवं पडुच्च पत्थि अंतरं। .. भवियाणुवादेण भवसिद्धियाणमोघभंगो। सम्मत्ताणवादेण सम्माइट्ठीण ओहिणाणिभंगो। गवरि इरियावहकम्मस्स णाणाजीगं पडुच्च पत्थि अंतरं। खइयसम्माइट्ठीणं पओअकम्म-समोदाणकम्म-इरियावहकम्माणं गाणेगजीनं पडुच्च पत्थि अंतरं। अनन्तर शुक्ललेश्याके सबसे उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कालके अन्तिम समयमें पूर्व में निर्जीर्ण हुए नोकर्मस्कन्धोंके बन्धको प्राप्त होनेपर अधःकर्मका अन्तरकाल उपलब्ध होता है । इस प्रकार अधःकर्मका उत्कृष्ट अन्तरकाल तीन समय कम दो अन्तर्मुहुर्त अधिक तेतीस सागर होता है । क्रियाकर्मका अन्तरकाल कितना होता हे ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल पांच अन्तर्मुहुर्त कम इकतीस सागर है । यथा-अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्तावाला एक द्रव्यलिंगी जीव उपरिम-उपरिम ग्रेवेयकके देवोंमें उत्पन्न हुआ। छह पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हुआ। विश्राम किया और विशुद्ध होकर वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त हुआ । क्रियाकर्मकी आदि दिखाई दी । अनन्तर सबसे स्तोक काल तक क्रियाकर्मके साथ रहकर मिथ्यात्वको प्राप्त हो अन्तर किया । अनन्तर सबसे स्तोक जीवितके शेष रहनेपर उपशमसम्यक्त्वको प्राप्त हुआ। क्रियाकर्मका । अन्तरकाल उपलब्ध हो गया । इस प्रकार क्रियाकर्मका उत्कृष्ट अन्तरकाल पांच अन्तर्मुहुर्त कम इकतीस सागर होता है । लेश्यारहित जीवोंके तपःकर्मका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य अन्तरकाल एकसमय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल छह महीना है । एक जीवकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है। भव्यमार्गणाके अनुवादसे भव्य जीवोंका भंग ओघके समान है ।सम्यक्त्वमार्गणाके अनुवादसे सम्यग्दृष्टियोंका भंग अवधिज्ञानियोंके समान है। इतनी विशेषता है कि ईर्यापथकर्मका नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है । क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंके प्रयोगकर्म, समवधानकर्म और ईर्यापथकर्मका नाना जीवों और एक जीवकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है। इतनी विशेषता है प्रतिषु । तेत्तीस ' इति पाठ::* प्रतिषु ' जीविदव्वे इति पाठः 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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