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________________ ५, ४, ३१. ) कम्माणुओगद्दारे पओअकम्मादीणं अंतरपरूवणा ( १६५ वा मणुस्सो वा अधो सत्तमाए पुढवीए गिरयाउअंबंधिय पुणो सव्वदीहमंतोमुहत्तं किण्णलेस्साए परिणमिय तिस्से किण्णलेस्साए परिणदपढमसमए णिज्जिण्णओरालियपरमाणणं बिदियसमए आधाकम्मस्स आदि करिय तदियसमयप्पहुडि अंतराविय एत्थेव किण्णलेस्साए अंतोमुत्तमच्छिय अधो सत्तमाए पुढवीए उप्पज्जिय पुणो तत्थ तेत्तीससागरोवमाणि जीविदूण णिक्खंतो । तदो णिक्खंतस्स वि अंतोमत्तकालं सा चेव किण्णलेस्सा उवलब्भदे । पुणो तिस्से किण्णलेस्साए चरिमसमए पुव्वं णिज्जिग्णपरमाणसु बंधमागदेसु आधाकम्मस्स लद्धमंतरं । एवं तिसमऊगबेअंतोमहत्तब्भहियतेत्तीससागरोवमाणि आधाकम्मस्स उक्कस्संतरं होदि । किरियाकम्मरस अंतरं केवचिरं कालादो होदि? जाणाजीवं पडुच्च पत्थि अंतरं । एगजीवं पड़च्च जहण्णेण अंतोमहत्तं । उक्कस्सेण छहि अंतोमहुत्तेहि ऊणिया तेत्तीससागरोवमाणि । तं जहाएक्को तिरिक्खो वा मणुस्सो वा अट्ठावीससंतकम्मिओ अधो सत्तमाए पुढवीए उववण्णो । छहि पज्जत्तीहि पज्जत्तयदो विस्संतो विसुद्धो वेदगसम्मत्तं पडिवण्णो। किरियाकम्मस्स आदी विट्ठा । तदो सव्वजहण्णमंतोमहत्तं किरियाकम्मेण अच्छिदूण मिच्छत्तं गदो अंतरिदो । सव्वजहण्णंतोमुत्तावसेसे जीवियव्वे तिणि वि करणाणि काऊणवसमसम्मत्तं पडिवण्णो । लद्धमंतरं किरियाकम्मस्स । तदो मिच्छत्तं गंतूण णिक्खंतो। तिरिक्खो जादो । एवं छहि अन्तोमहुत्तेहि ऊणाणि तेत्तोससागरोवमाणि किरियाकम्मस्स उक्कस्तरं । एवं गीलाए वि नीचे सातवीं पृथिवीकी नारकायुका बन्ध करके पुनः सबसे दीर्घ अन्तर्मुहर्त काल तक कृष्णलेश्यारूपसे परिणम कर उस कृष्णलेश्यारूपसे परिणत होनेके प्रथम समयमें निर्जीर्ण हुए औदारिकशरीरके परमाणुओंकी अपेक्षा दूसरे समय में अधःकर्मकी आदि कर और तीसरे समयसे अन्तर कराकर तथा कृष्णलेश्याके साथ अन्तर्मुहुर्त काल तक यहीं रहकर नीचे सातवी पृथिवीमें उत्पन्न हुआ। पुनः वहां तेतीस सागर जीवित रहकर निकला। वहांसे निकलने के बाद भी अन्तर्मुहूर्त काल तक वही कृष्णलेश्या होती है। पुनः उस कृष्णलेश्याके अन्तिम समयमें पहले निर्जीर्ण हुए औदारिक परमाणुओंके बन्धको प्राप्त होनेपर अधःकर्मका अन्तरकाल उपलब्ध होता है। इस प्रकार अध:कर्मका उत्कृष्ट अन्तरकाल तीन समय कम दो अन्तर्मुहुर्त अधिक तेतीस सागर होता है। क्रियाकर्मका अन्तरकाल कितना है? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल छह अन्तर्मुहूर्त कम तेतीस सागर है। यथा अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्तावाला एक तिर्यंच या मनुष्य नीचे सातवीं पृथिवीमें उत्पन्न हुआ। छह पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हुआ। विश्राम किया। विशुद्ध हुआ और वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त हुआ। इसके क्रियाकर्मकी आदि दिखाई दी । अनन्तर सबसे जघन्य अन्तर्मुहूर्त काल तक क्रियाकर्मके साथ रहकर मिथ्यात्वको प्राप्त होकर उसका अन्तर किया। पुनः जीवितमें सबसे जघन्य अन्तमुहर्त काल शेष रहनेपर तीनों ही करणोंको करके उपशमसम्यक्त्वको प्राप्त हुआ। क्रियाकर्मका अन्तरकाल उपलब्ध हो गया। अनन्तर मिथ्यात्वको प्राप्त होकर निकला और तिर्यंच हो गया। इस प्रकार क्रियांकर्मका उत्कृष्ट अन्तरकाल छह अन्तर्मुहुर्त कम तेतीस सागर कप्रतिषु 'आधाकम्मेसु ' इति पाठः 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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