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________________ ( १६३ ५, ४, ३१ ) कमाणुओगद्दारे अकम्मादीणं अंतरपरूवणा जहाक्खादसुद्धिसंजदाणं पओअकम्म-समोदाणकम्म- इरियावहकम्म- तवोकम्माणं जाणेगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं । आधाकम्मस्स अंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णानाजीवं पच्च णत्थि अंतरं । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ । उवकस्सेण अंतोमुहुस्तन्भहियअट्ठवस्से हि ऊणा पुव्वकोडी । तं जहा एक्को खइयसम्माइट्ठी पुण्वकोडाउसु मणुस्सेसु उववण्णो । गब्भादिअट्ठवस्साणमुवरि अधापवत्तकरणमपुव्वकरणं चकादूण अप्पमत्तभावेण सामाइय-छेदोवद्वावणसंजमाणमेगदरं पडिवण्णो । तदो पमत्तो जादो। पुणो पमत्तापमत्तपरावत्तसहस्सं कादूण अपुव्वो अणियट्टी सुहुमो होदूण खोणकसाओ जहाक्खादसुद्धिसंजदो जादो । तस्स खीणकसायरस पढमसमए जे णिज्जिण्णा ओरालिक्खधा तेसि बिदिय समए आधाकम्मस्स आदी होदि । तदियसमयप्पहूडि अंतरं होण तदो सजोगिचरिमसमए ओरालियखंधेसु बंधमागदेसु आधाकम्मस्स लद्धमंतरं । एवं तिसमयाहियअंतो मुहुत्तम्भ हियगब्भादिअट्ठवस्सेहि ऊणिया पुव्वकोडी आधाकम्मस्स उक्कस्तरं । संजदासंजदाणं पओअकम्म-समोदाणकम्म किरियाकम्माणं णाणेगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं । आधाकम्मस्स अंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं । एगजीवं पडुच्च जहणेण एगसमओ । उक्कस्सेण देसूणपुव्वकोडी । तं जहाएक्को मिच्छाइट्ठी अट्ठावीससंतकम्मिओ पुव्वकोडाउएसु सम्मुच्छिम सण्णिपचदिय यथाख्यातशुद्धिसंयत जीवोंके प्रयोगकर्म, समवधानकर्म, ईर्यापथकर्म और तपःकर्मका नाना जीवों और एक जीवकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है । अधःकर्मका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवों की अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त और आठ वर्ष कम एक पूर्वकोटि है । यथा - एक क्षायिकसम्यदृष्टि जीव पूर्वकोटिकी आयुवाले मनुष्यों में उत्पन्न हुआ । गर्भसे लेकर आठ वर्षका होनेपर अधःप्रवृतकरण और अपूर्वकरणको करके अप्रमत्तभाव के साथ सामायिक और छेदोपस्थापना संयमों में से किसी एक को प्राप्त हुआ । अनन्तर प्रमत्त हो गया । पुनः प्रमत्त और अप्रमत्त गुणस्थानके हजारों परावर्तन करके, अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण और सूक्ष्मसाम्पराय होकर क्षीणकषाय यथाख्यातशुद्धिसंयत हो गया । उस क्षीणकषाय जीवके प्रथम समय में जो औदारिक स्कन्ध निर्जीर्ण हुए उनकी अपेक्षा दूसरे समय में अधः कर्म की आदी होती है और तीसरे समय से अन्तर होकर फिर सयोगी के अन्तिम समय में औदारिक स्कन्धोंके बन्धको प्राप्त होनेपर अधः कर्मका अन्तरकाल उपलब्ध होता है । इस प्रकार तीन समय और अन्तर्मुहूर्त अधिक गर्भसे लेकर आठ वर्ष न्यून पूर्वकोटि अधःकर्मका उत्कृष्ट अन्तरकाल होता है । संयतासंयत जीवों के प्रयोगकर्म, समवधानकर्म और क्रियाकर्मका नाना जीवों और एक जीवकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है । अधःकर्मका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तरकाल एक समय हैं और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम एक पूर्वकोटि है । यथा - अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्तावाला एक मिथ्यादृष्टि जीव पूर्वकोटिकी आयुवाले सम्मूच्छिम संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच पर्याप्तकों में उत्पन्न हुआ । छह For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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