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________________ ५, ४, ३१. ) कम्माणुओगद्दारे पओअकम्मादीणं अंतरपरूवणा ( १६१ सुमो अणियट्टी अपुव्वो होटूण अप्पमत्तो जादो । लद्धं किरियाकम्स्स उक्कस्संतरं । वरि जहणणंतरादो एवमुक्कस्संतरं संखेज्जगुणं । मणपज्जवणाणीसु पओअकम्म-समोदाणकम्म तबोकम्माणं णाणेगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं । आधाकम्मस्स अंतरं केचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ । उक्कस्सेण पुण्वकोडी देसूणा । तं जहा- एक्को देवो वा* णेरइयो वा वेदगसम्माइट्ठी पुव्वकोडाउएसु मनुस्सेसु उववणी | गमादिअट्ठवस्साणमुवरि संजमं पडिवज्जिय मणपज्जवणाणी जादो । तस्स मणपज्जवणाणिस्स पढमसमए जे निज्जिण्णा ओरालियखंधा तेसि बिदियसमए आदी होदि । तदियसमय पहुडि अंतरं होण पुव्त्रकोडिचरिमसमए पुव्वणिज्जिण्ण ओरालियखंधे बंध मागदेसु आधाकम्मस्स लद्धमुक्कस्संतरं । एवं तीहि समएहि अंतोमुत्तभय अदुवासेहि य ऊणा पुव्वकोडी आधाकम्मस्स उक्कस्संतरं । इरियावथकम्मस्स वि एवं चेव । णवरि कोइ वि विसेसो जाणिय वत्तध्वो । किरियाकम्मस्स अंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च गत्थि अंतरं । एगजीवं पडुच्च जहष्णुक्कस्सेण अंतोमुहुतं । संजमाणुवादेण संजदाणं मणपज्जवणाणिभंगो । सामाइय-छेदोवद्वावणसुद्धिसंजदार्ण सूक्ष्मसाम्पराय, अनिवृत्तिकरण और अपूर्व करण होकर अप्रमत्तसंयत हो गया । इस तरह क्रियाकर्मका उत्कृष्ट अन्तरकाल प्राप्त हो गया । इतनी विशेषता है कि जघन्य अन्तरकालसे यह उत्कृष्ट अन्तरकाल संख्यातगुणा है । • मन:पर्ययज्ञानियों में प्रयोगकर्म, समवधानकर्म और तपःकर्मका नाना जीवों और एक जीवकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है । अधःकर्मका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्नरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम पूर्वकोटि है । यथा- एक देव या नारकी वेदकसम्यग्दृष्टि जीव पूर्वकोटिकी आयुवाले मनुष्यों में उत्पन्न हुआ और गर्भसे लेकर आठ वर्षका होनेपर संयमको प्राप्त कर मन:पर्ययज्ञानी हो गया । उस मन:पर्ययज्ञानीके प्रथम समयमें जो औदारिक स्कन्ध निर्जीर्णं हुए उनकी अपेक्षा दूसरे समय में अधः कर्मकी आदि होती है और तीसरे समयसे अन्तर होकर पूर्वकोटि अन्तिम समय में पूर्व निर्जीर्ण औदारिक स्कन्धोंके बन्धको प्राप्त होनेपर अधः कर्मका उत्कृष्ट अन्तरकाल उपलब्ध होता है । इस तरह तीन समय और अन्तर्मुहूर्त अधिक आठ वर्ष कम पूर्वकोटि अधः कर्मका उत्कृष्ट अन्तरकाल होता है। ईर्यापथकर्मका भी इसी प्रकार अन्तरकाल होता है । इतना विशेष है कि जो कुछ विशेषता है वह जानकर कहनी चाहिये । क्रियाकर्मका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है । संयममार्गणा अनुवादसे संयतोंका कथन मन:पर्ययज्ञानियों के समान है । सामायिक और अ आ-काप्रतिषु 'देवो जादो वा इति पाठः । का तात्योः 'देसूणा पुत्रकोडी ' इति पाठ [ 4 पुन्व कोडीणिज्जिण्ण-' इति पाठ: 1 XXX अ आ-काप्रति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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