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________________ १५८) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड णिज्जिण्णा ओरालियसरीरपरमाण तेसि बिदियसमए आधाकम्मस्स आदी होदि । तदियसमयप्पहुडि ताव अंतरं जाव सासणकालो सव्वो मिच्छाइदिम्हि* घिभंगणाणसव्वुक्कस्सकालस्स दुचरिमसमओ त्ति । तदो विभंगणाणकालचरिमसमए तेसु चेव पुवणिज्जिण्णओरालियसरीरणोकम्मक्खधंसु बंधमागदेसु आधाकम्मस्स उक्कस्संतरं होदि । एवं तिसमऊणछ आवलियाओ मिच्छाइटिसबुक्कस्सविभंगणाणद्धा च आधाकम्मरस उक्कस्संतरं होदि। आभिणिबोहिय-सुद-ओहिणाणीसु पओअकम्म-समोदाणकम्माणमंतरं केवचिरं कालादो होदि? णाणेगजीनं पडुच्च गतथि अंतरं। आधाकम्मरस अंतरं केर्वाचर कालादो होदि? णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं। एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ। उक्कस्सेण णवणउदिसागरोवमाणि सादिरेयाणि । तं जहा- एकको मिच्छाइट्ठी पुवकोडाउएसु कुक्कुड-मक्कडेसु सणिपंचिदियपज्जत्तएसु उववण्णो। तत्थ बेमासाणं दिवसपुधत्तेणब्भहियाणमुवरि तिणि वि करणागि कादणुवसमसम्मत्तमोहिणाणं मदि-सुदणाणाविणाभाविणं पडिवण्णो तत्थ तिण्णाणपढमसमए जे णिज्जिण्णा ओरालियपरमाण तेसि बिदियसमए आधाकम्मस्स आदी होदि । तदो तदियप्पहाडि देसूणपुव्वकोडी अंतरं होदूण पुणो ओहिणाणेण सह तिरिक्खाउएणणचोद्दससागरोसाथ प्राप्त हुआ। वहां विभंगज्ञानके उत्पन्न होने के प्रथम समयमें जो औदारिकशरीरके परमाण निर्जीण हुए उनके दूसरे समयभे अध:कर्मकी आदि होती है ! और तीसरे समयसे लेकर सासा दनका सब काल विताकर मिथ्यादृष्टिके विभंगज्ञानके सर्वोत्कृष्ट कालके द्विचरम समयके प्राप्त होने तक अन्तर होता है। अनन्तर विभंगज्ञानके कालके अन्तिम समय में उन्हीं पूर्वनिर्जीर्ण औदारिकशरीरके नोकर्मस्कन्धोके बन्धको प्राप्त होनेपर अध:कर्मका उत्कृष्ट अन्तर होता है। इस प्रकार तीन समय कम छह आवलि काल और मिथ्यादृष्टिके सर्वोत्कृष्ट विभगज्ञानका काल, य दोनों मिलकर अधःकर्मका उत्कृष्ट अन्तरकाल होता है। आभिनिबीधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें प्रयोगकर्म और समवधानकर्मका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवों और एक जीवकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है। अधःकर्मका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल साधिक निन्यानब सागर है । यथा-- एक मिथ्यादृष्टि जीव पूर्वकोटिकी आयुवाले संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त कुक्कुड पक्षी और मर्कटों में उत्पन्न हुआ । वहां दिवसपृथक्त्व अधिक दो माह होनेपर तीनों ही करणोंको करके उपशमसम्यक्त्वको और आभिनिबोधिकज्ञान एवं श्रुतज्ञानके साथ अवधिज्ञानका प्राप्त हुआ। वहां तीन ज्ञानके प्रथम समयमें जो औदारिकशरीरसे परमाणु निर्जीण हुए उनके दूसरे समयमें अधःकर्मकी आदि होती हैं। अनन्तर तीसरे समयसे लेकर कुछ कम पूर्वकोटिप्रमाण अन्तर होकर पुन: अवधिज्ञानके साथ तिर्यंचायुसे न्यून चौदह सागरकी स्थितिवाले देवोंमें उत्पन्न हुआ। पुनः अवधिज्ञानके * अ-आ-काप्रतिषु · मिच्छा इट्ठीहि ', ताप्रती — मिच्छाइट्ठी (ट्ठि) ( हि ) ' इति पाठः 1 प्रतिषु — मक्कुडेसु ' इति पाठः : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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