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________________ १५६ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड (५, ४, ३१. वाहिं अट्ठवस्साणि अंतोमहत्तब्भहियाणि गमेदूण अद्धपोग्गलपरियडस्स पढमसमए उवसमसम्मत्तं संजमं च समयं पडिवण्णो । तवोकम्म-किरियाकम्माणमादी दिट्ठा। पुणो उवसमसम्मत्तद्धाए छ आवलिया अस्थि त्ति आसाणं गंतूणंतरिदो। पुणो अद्धपोग्गलपरियदृस्स सव्वजहण्णअंतोमहत्तावसेसे* तिण्णि वि करणाणि कादूण उवसमसम्मत्तं संजमं च पडिवण्णो । तवोकम्म-किरियाकम्माणं लद्धमंतरं। तदो अणंताणुबंधि विसंजोएदूण वेदगसम्मत्तं पडिवण्णो । तदो अंतोमुहुत्तेण खइयसम्माइट्ठी जादो। तदो पमत्तापमत्तपरावत्तसहस्सं कादूण अपुव० अणियट्टि० सुहुमसांपराइय० सजोगी अजोगी होदूण सिद्धो जादो । एवं गqसयवेदस्स तवोकम्म-किरियाकम्माणं बारसेहि अंतोमुत्तेहि ऊणयमद्धपोग्गलपरियट्टमुक्कस्संतरं होदि । अवगदवेदाणं पओअकम्म-समोदाणकम्म इरियावहकम्म-तवोकम्माणं णाणेगजीवं पडच्च गत्थि अंतरं । आधाकम्मस्स अंतरं केवचिरं कालादो होदि? णाणाजीवं पड़च्च गत्थि अंतरं। एगजीवं पडुच्च जहण्णण एगसमओ । उक्कस्सेण पुन्वकोडी देसूणा । तं जहा- एक्को देवो वा रइओ वा खइयसम्माइट्ठी पुत्वकोडाउएसु मणस्सेस उववण्णो । तदो गब्भादिअवस्साणमंतोमहत्तब्भहियाणमवरि अप्पमत्तभावेण संजमं पडिवण्णो । पुणो पमत्तो जादो । तदो पमत्तापमत्तपरावत्तसहस्सं कादूण अपुव्व:--अणिर्याट्टगुणट्ठाणम्मि संखेज्जे भागे उत्पन्न हुआ। अनन्तर अर्ध पुद्गलपरिवर्तनके बाहर अन्तर्मुहुर्त अधिक आठ वर्ष बिताकर अर्धपुद्गलपरिवर्तनके प्रथम समयमें उपशमसम्यक्त्व और संयमको एक साथ प्राप्त हुआ। इसकेतपःकर्म और क्रियाकर्मकी आदि दिखाई दी। पुनः उपशमसम्यक्त्वके कालमें छह आवलि कालशेष रहनेपर सासादन गुणस्थानको प्राप्त होकर इन दोनोंका अन्तर किया । अनन्तर अर्ध पुद्गलपरिवर्तन कलमें सबसे जघन्य अन्तर्महर्त काल शेष रहनेपर तीनों ही करणोंको करके उपशमसम्यक्त्व और संयमको प्राप्त हुआ। तपःकर्म और क्रियाकर्मका अन्तर प्राप्त हो गया । अनन्तर अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना करके वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त हुआ । अनन्तर अन्तर्मुहूर्तमें क्षायिकसम्यग्दृष्टि हो गया । अनन्तर प्रमत्त और अप्रमत्त गुणस्थानोंके हजारों परावर्तन करके अपूर्वक्षपक, अनिवृत्तिक्षपक, सूक्ष्मसाम्परायक्षपक, क्षीणमोह, सयोगी और अयोगी होता हुआ सिद्ध हो गया । इस प्रकार नपुंसकवेदवाले के तरःकर्म और क्रियाकर्मका बारह अन्तर्मुहुर्त कम अर्ध पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण उत्कृष्ट अन्तरकाल होता है। __अपगतवेदवाले जीवोंके प्रयोगकर्म, समवधानकर्म, ईर्यापथकर्म और तपःकर्मका नाना जीवों और एक जीवकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है । अधःकर्मका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम पूर्वकोटिप्रमाण है । यथा-एक देव या नारकी क्षायिकराम्यग्यग्दृष्टि जीव पूर्वकोटिकी आयुवाले मनुष्योंमें उत्पन्न हुआ । अनन्तर गर्भसे लेकर आठ वर्ष और अन्तर्मुहुर्त के बाद अप्रमत्तभावसे संयमको प्राप्त हुआ। अनन्तर प्रमत्त हुआ । अनन्तर प्रमत्त - और अप्रमत्त गुणस्थानोंके हजारों परावर्तन करके अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण गुणस्थानके * ताप्रती '-सेस इति पाठः । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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