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५, ४, ३१. ) कम्माणुओगद्दारे पओअकम्मादीणं अंतरपरूवणा ( १५५ वेदेण उववण्णो । छहि पज्जत्तीहि पज्जत्तयदो विस्संतो विसुद्धो वेदगसम्मत्तं पडिवणो। किरियाकम्मस्स आदी दिदा । सव्वलहं किरियाकम्मेण अच्छिदूण मिच्छत्तं गदो अंतरिदो । तदो सागरोवमसदपुधत्ते सव्वजहण्णअंतोमुहुत्तावसेसे उवसमसम्मत्तं पडिवण्णो । किरियाकम्मस्स लद्धमंतरं । पुणो आसाणं गंतूण मदो इत्थिवेदो णबुंसयवेदो वा जादो । एवं पंचहि अंतोमहत्तेहि ऊणिया सगढिदी किरियाकम्मस्स उक्कस्संतरं होदि ।
णवंसयवेदाणं पओअकम्माण-समोदाणकम्माणं णाणेगजीवं पड़च्च णत्थि अंतरं। आधाकम्मरस अंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च पत्थि अंतरं । एगजीवं पडुच्च जहणेण एगसमओ। उक्कस्सेण अणंतो कालो तिसमऊणो असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । एक्केण पोग्गलपरियट्टेण चेव होदव्वं, पोग्गलपरियट्टादो उरि अच्छणं पडि संभवाभावादो ? ण एस दोसो, अप्पिदजीवं मोत्तण अण्णजीवेहि सह आधाकम्मेण परिणदाणं-पि णोकम्मक्खंधाणं अंतराभावो ण होदि त्ति कादूण असंखेज्जाणं पोग्गलपरियट्टाणं संभवं पडि विरोहाभावादो। तवोकम्म-किरियाकम्माणमंतरं केचिरं कालादो होदि? णाणाजीवं पडुच्च णस्थि अंतरं। एगजीनं पडुच्च जहण्णण अंतोमुहुतं । उक्कस्सेग उबट्टपोग्गलपरियझें । तं जहा एक्को अगादियमिच्छाइट्ठी णवंसयवेदेण मणुस्सेसु उवण्वणो। दो अद्धपोग्गलपरियट्टस्स पुरुषवेदके साथ देवोंमें उत्पन्न हुआ । छह पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हुआ, विश्राम किया और विशुद्ध होकर वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त हुआ। क्रियाकर्मकी आदि दिखाई दी। पुनः अति स्वल्प काल तक क्रियाकर्म के साथ रहकर मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ। क्रियाकर्मका अन्तर किया । अनन्तर सौ सागरपृथक्त्वमें सबसे जघन्य अन्तर्मुहुर्त काल शेष रहनेपर उपशमसम्यक्त्वको प्राप्त हुआ। क्रियाकर्मका अन्तर प्राप्त हो गया । अनन्तर सासादन गुणस्थानको प्राप्त होकर मरा और स्त्रीवेदी या नपुंसकवेदी हो गया। इस प्रकार पांच अन्तर्मुहुर्त कम अपनी स्थिति क्रियाकर्मका उत्कृष्ट अन्तरकाल होता है।
नपुंसकवेदवाले जीवोंके प्रयोगकर्म और समवधानकर्मका नाना जीवों और एक जीवकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है । अध:कर्मका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवों की अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल तीन समय कम अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनके बराबर है ।
शंका - एक पुद्गलपरिवर्तन ही उत्कृष्ट अन्तरकाल होना चाहिए, क्योंकि, एक पुद्गलपरिवर्तनके बाद उस जीवका वहां रहना सम्भव नहीं है ?
समाधान - यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि विवक्षित जीबको छोडकर अन्य जोवोंके साथ अध:कर्मरूपसे परिणत हुए नोकर्मस्कन्धोंका भी अन्तराभाव नहीं होता है, ऐसा समझकर असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण मानने में कोई विरोध नहीं आता है।
तपःकर्म और क्रियाकर्मका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है । एक जीवको अपेक्षा जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहुर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल उपार्ध पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है । यथा-एक अनादि मिथ्यादृष्टि जीव नपुंसकवेदके साथ मनुष्योंमें
B ताप्रती · अण्णजीवेण ' इति पाठः । प्रतिषु परिराणं इति पाठ: ।
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