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________________ १५४ ) छक्खंडागमे वग्गणा - खंड ( ५, ४, ३१. पुरिस- बुंसयवेदो जादो । एवं पंचहि अंतोमुहुत्तेहि ऊणिया सर्गाद्वदी किरियाकम्मस्म उक्करसंतरं होदि । पुरिसवेदाणं पओअकम्म-समोदाणकम्माणं णाणेगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं । आधाकम्मस्स अंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं । एगजीवं पडुच्च जहणंण एगसमओ । उक्कस्सेण तिसमऊणं सागरोवमसदपुधत्तं । तवोकम्मस्स अंतरं केवचिरं कालादो होवि ? णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं। एगजीवं पडुच्च जहणेण अंतोमुहुत्तं । उक्कस्सेण सागरोवमसदपुधत्तं । तं जहा- एक्को इत्थि - वंसयवेदो अट्ठावीस संतकम्मिओ पुरिसवेदेण मणस्सेसु उववण्णो । गन्भादिअट्ठवस्साणमुवरि वेदगसम्मत्तं संजमं च समयं पडिवण्णो । तवोकम्मस्स आदी दिट्ठा। सव्वलहुं तवोकम्मेण अच्छिदूण मिच्छतं गदो अन्तरिदो । तदो सागरोवमसदधत्तेण सव्वजहणमंतोमुहुत्तावसेसे उवसमसम्मत्तं संजमं च पडवण्णो । तवोकम्मस्स लद्धमंतरं पुणो सासणं गंतूण मदो इत्थिवेदो णवुंसयवेदो वा जादो । एवं गभादिअट्ठवस्सेहि अंतोमृहुत्तन्भहिएहि ऊणिया सगट्टिदी तवोकम्मस्स उक्कस्संतरं होदि । किरियाकम्मस्संतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीगं पडुच्च णत्थि अंतरं । एगजीगं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं । उक्कस्सेण सागरोवससवपुधत्तं देसूणं । तं जहाएक्को अट्ठावीससंतकम्मिओ इत्थिवेदो णवुंसयवेदो वा कालं काढूण देवेषु पुरिस - वेदी या नपुंसकवेदी हो गया । इस प्रकार पांच अन्तर्मुहूर्त कम अपनी स्थिति क्रियाकर्मका उकृष्ट अन्तरकाल होता है । पुरुषवेदवाले जीवों के प्रयोगकर्म और समवधानकर्मका नाना जीवों और एक जीवकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है । अधःकर्मका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल तीन समय कम सौ सागरपृथक्त्व है । तपःकर्मका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल सौ सागरपृथक्त्व है । यथा - अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्तावाला एक स्त्रीवेदी या नपुंसक वेदी जीव पुरुषवेदके साथ मनुष्यों में उत्पन्न हुआ। वहां गर्भसे लेकर आठ वर्षका होनेपर वेदकसम्यक्त्व और संयमकी एक साथ प्राप्त हुआ । इसके तपः कर्मकी आदि दिखाई दी । अनन्तर सबसे थोडे काल तक तपःकर्मके साथ रहकर मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ । तपःकर्मका अन्तर किया । तदनन्तर सौ सागरपृथक्त्व में सबसे जघन्य अन्तर्मुहूर्त काल शेष रहनेपर उपशमसम्यक्त्व और संयमको ( एक साथ ) प्राप्त हुआ तपःकर्मका अन्तर प्राप्त हो गया । अनन्तर सासादन गुणस्थानको प्राप्त होकर मरा और स्त्रीवेद या नपुंसकवेदी हो गया । इस प्रकार गर्भसे लेकर अन्तर्मुहूर्त अधिक आठ वर्ष कालसे न्यून अपनी स्थिति तपःकर्मका उत्कृष्ट अन्तर होता है । क्रियाकर्मका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं हैं । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम सौ सागरपृथक्त्व है । यथा - अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्तावाला स्त्रीवेदी या नपुंसकवेदी एक जीव मरकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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