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५, ४ , ३१ ) कम्माणुओगद्दारे पओअकम्मादीणं अंतरपरूवणा (१५३ अंतरं । एगजीवं पडुच्च जहण्णण एगसमओ। उक्कस्सेण तिसमऊणपलिदोवमसदपुधत्तं । तवोकम्मस्स अंतरं केवचिरं कालादो होदि? णाणाजीवं पडुच्च णस्थि अंतरं। एगजीनं पड़च्च जहण्णण अंतोमहत्तं । उक्कस्सेण पलिदोवमसदपुधत्तं देसूणं । तं जहा-एक्को पुरिसवेदो णवंसयवेदो वा अट्ठावीससंतकम्मिओ इस्थिवेदमणुस्सेसु उववण्णो। गन्मादिअटुवस्साणमंतोमहत्तब्भहियाणमुवरि वेदगसम्मत्तं संजमं च जुगवं पडिवण्णो । तवोकम्मस्स आदी दिट्ठा। सव्वलहुं तवोकम्मेण अच्छिदूण मिच्छत्तं गदो अंतरिदो। पलिदोवमसदपुधत्तस्स सव्वजहणंतोमुत्तावसेसे उवसमसम्मत्तं संजमं च जगनं पडिवण्णो। तवोकम्मस्स लद्धमंतरं। पुणो उवसमसम्मत्तद्धाए एगसमयावसेसाए आसाणं गंतूण मदो पुरिसवेदो देवो जादो । एवं गब्भादिअदुवस्से हि बेअंतोमुहुत्तन्महिएहि ऊणिया सगट्टिदी तवोकम्मस्स उक्कस्संतरं होदि । किरियाकम्मस्स अंतरं केवचिरं कालादो होदि? णाणाजीनं पड़च्च णत्थि अंतरं । एगजीनं पडच्च जहणेण अंतोमहत्तं । उक्कस्सेण अंतोमहत्तणं पलिदोवमसदपुधत्तं । तं जहा-एक्कोतिरिक्खो वा मणुस्सो वा अट्ठावीससंतकम्मिओ पुरिस-णवंसयवेदो देवेसु उववण्णो। छहि पज्जत्तीहि पज्जत्तयदो। विस्तो विसुद्धो वेदगसम्मत्तं पडिवण्णो किरियाकम्मस्स आदी दिट्ठा । तदो मिच्छत्तं गंतूण अंतरिदो। पुणो पलिदोवमसदपुधत्ते सव्वजहण्णअंतोमुहुत्तावसेसे उवगमसम्मत्तं पडिवण्णो । किरियाकम्मस्स लद्धमंतरं । तदो सासणं गंतूणं मदो जीवोंकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल तीन समय कम सौ पल्यपथक्त्व है। तपःकर्मका अन्तरकाल कितना है। नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम सौ पल्यपृथक्त्व है यथा-अट्ठाईस कर्मोंकी सत्तावाला एक पुरुषवेदी या नपुंसकवेदी जीव स्त्रीवेदवाले मनुष्योंमें उत्पन्न हुआ । गर्भसे लेकर अन्तर्मुहूर्त अधिक आठ वर्षका होनेपर वेदकसम्यक्त्व और संयमको एक साथ प्राप्त हुआ। इसके तपःकर्मकी आदि दिखाई दी। अनन्तर सबसे लघु (अन्तर्मुहूर्त) काल तक तपःकर्म के साथ रहकर मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ और उसका अन्तर किया । अनन्तर सौ पल्यपृथक्त्वमें सबसे जघन्य अन्तर्मुहूर्त काल शेष रहनेपर उपशमसम्यक्त्व और संयमको एक साथ प्राप्त हुआ। इसके तपःकर्मका अन्तरकाल लब्ध हो गया । पुन: उपशमसम्यक्त्वके कालमें एक समय शेष रहनेपर सासादन गुणस्थानको प्राप्त होकर मरा और पुरुषवेदवाला देव हुआ । इस प्रकार गर्भसे लेकर दो अन्तर्मुहूर्त अधिक आठ वर्ष अपनी स्थिति तप:कर्मका उत्कृष्ट अन्तरकाल होता है। क्रियाकर्मका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तरकाल अन्तमुहुर्त हैं और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त कम सौ पल्यपृथक्त्व है। यथा अट्ठाईस कर्मोकी सत्तावाला पुरुषवेदी या नपुंसकवेदी एक तिर्यंच या मनुष्य देवोंमें उत्पन्न हुआ। छह पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हुआ। विश्राम किया, यिशुद्ध हुआ और वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त हुआ। इसके क्रियाकर्मकी आदि दिखाई दी। अनन्तर मिथ्यात्वको प्राप्त होकर उसका अन्तर किया। अनन्तर सौ पल्यपृथक्त्वमें सबसे जघन्य अन्तर्मुहूर्त काल शेष रहनेपर उपशमसम्यक्त्वको प्राप्त हुआ। क्रियाकर्मका अन्तर लब्ध हो गया। अनन्तर सासादन गुणस्थानको प्राप्त होकर मरा और
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