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१५० ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
(५, ४, ३१. समूहो तिसमऊणो । तं जहा- एक्को एइंदियो तसअपज्जत्तएसु उववण्णो । तत्थ उप्पण्णपढमसमए उववादजोगेण ओरालियसरीरणिमित्तं जे गहिदा परमाण तेसि बिदियसमए णिज्जिण्णाणं आधाकम्मस्स आदी होदि । पुणो तदियसमयप्पहुडि ताव अंतरं होदूण गच्छदि जाव संखेज्जअसीदि-सट्टि-दाल-चदुवीसअपज्जत्तभवाणमंतोमुहुत्तकालाण* दुचरिमसमओ त्ति । पुणो चरिमसमए तेतु चेव पुणो णिज्जिण्णणोकम्मरक्खंधेसु बंधमागदेसु आधाकम्मस्स लद्धमंतरं होदि।।
जोगाणुवादेण पंचमणजोगि पंचवचिजोगीणं सव्वपदाणं णाणेगजीवं पडुच्च पत्थि अंतरं । णवरि आधाकम्मस्स एमजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ। उक्कस्सेण अंतोमहत्तं तिसमऊणं । एवं कायजोगिस्स । णवरि आधाकम्मस्स अंतरं एगजीवं पड़च्च जहण्णण एगसमओ । उक्कस्सेण अणंतो कालो तिसमऊणो असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । ओरालियकायजोगीसु एवं चेव । णवरि आधाकम्मस्स अंतरं एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ। उक्कस्सेण बावीसवस्ससहस्साणि तिसमयाहियअंतोमुत्तागि । तं जहा- एक्को तिरिक्खो वा मणस्सो वा बादरपुढविकाइयपज्जत्तएसु उववण्णो। चदुहि पज्जत्तीहि पज्जत्तयदपढमसमए जे गहिदा परमाणू तेसि बिदियसमए है । यथा- एक एकेन्द्रिय जीव त्रस अपर्याप्तकोंमें उत्पन्न हुआ। वहां उत्पन्न होनेके पहले समयमें उपपाद योगके द्वारा औदारिकशरीरके निमित्त जो पुद्गलपरमाणु ग्रहण किये उनके दूसरे समयमें निर्जीर्ण हो जानेपर अधःकर्मका प्रारम्भ होता है । पुन: तीसरे समयसे लेकर अस्सी, साठ, चालीस और चौबीस अपर्याप्त भवप्रमाण संख्यात अन्तर्मुहुर्तोंके द्विचरम समय तक उसका अन्तर रहता है । पुन: अन्तिम समयमें उन्हीं निर्जीर्ण हुए कर्मस्कन्धोंके पुनः बन्धको प्राप्त होनेपर अध:कर्मका अन्तरकाल लब्ध होता है।
योगमार्गणाके अनुवादसे पांच मनोयोगी और पाच वचनयोगी जीवोंके सब पदोंका नाना जीवों और एक जीवकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है । इतनी विशेषता है कि अधःकर्मका एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल तीन समय कम अन्तर्मुहूर्त है । इसी प्रकार काययोगीके जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि इसके अध:कर्मका एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल तीन समय कम अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनके बराबर है । औदारिककाययोगियोंमें इसी प्रकार जानना चाहिय । इतनी विशेषता है कि इनके अधःकर्मका एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल तीन समय और अन्तर्मुहुर्त कम बाईस
र वर्ष है । यथा- कोई एक तिर्यंच या मनुष्य बादर पृथिवीकायिक पर्याप्तकोंमें उत्पन्न
। चार पर्याप्तियोंसे पर्याप्त होनेपर अनन्तर प्रथम समय में जो परमाण ग्रहण किये उनके दूसरे समयमें निर्जीर्ण होनेपर अधःकर्मकी आदि होती है । पुन: तीसरे समयसे लेकर
*ताप्रती ' समूहो त्ति ससऊणो' इति पाठ.18 प्रतिष 'प्पहुडि जाव ताव ' * अ-आ-काप्रतिषु • मतोमहुत्त कालाणं', ताप्रती · मंतोमुहुतो (त्त) कालाणं ' इति पाठः।।
अ-आ- काप्रतिषु 'णिजिण्णोकम्म ' इति पाठः ।
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