SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 178
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५, ४ , ३१) कम्माणुओगद्दारे पओअकम्मादीणं अंतरपरूवणा (१४५ जादो। अंतरिदो। तदो णिहा-पयलाणं बंधवोच्छेदं कादण मदो देवो जादो। लद्धमंतरं। एवं किरियाकम्मस्स जहण्णंतरुवलंभादो। उक्कस्सेण सागरोवमसहस्सं . पुवकोडिपुधत्तेणब्भहियं । कुदो? एक्को अट्ठावीससंतकम्मिओ विलिदियो सम्मुच्छिमसण्णिपंचिदियपज्जत्तएसु उववण्णो। छहि पज्जत्तीहि पज्जत्तयदो विस्संतो विसुद्धो वेदगसम्मत्तं पडिवण्णो। किरियाकम्मस्स आदी दिट्ठा। तदो सव्वलहुमंतोमुहुत्तं किरियाकम्मेण अच्छिदूण मिच्छत्तं गदो अंतरिदो। तदो सागरोवमसहस्सं पुवकोडि. पुधत्तेणब्भहियं हिंडिदूण तदो अपच्छिमे भवग्गहणे पुवकोडाउएसु मणुस्सेसु उववण्णो। पुणो अंतोमहत्तावसेसे उवसमसम्मत्तं संजमं च जुगनं परिवण्णो। किरियाकम्मस्स लद्धमंतरं। तदो सासणं गंतूण मदो एइंदियो जादो। एवं पंचहि अंतोमुहुत्तेहि ऊणिया सगुक्कस्सट्टिदी किरियाकम्मस्स उक्कस्संतरं होदि ति । एवं पंचिदियपज्जतस्स वि वत्तन। गवरि जम्हि सागरोवमसहस्सं पुवकोडिपुधत्तेणब्भहियमुक्कस्तरं भणिदं तम्हि सागरोवमसदपुधत्तं वत्तव्वं । ___ कायाणुवादेण पुढविकाइय-आउकाइय तेउकाइय-वाउकाइयाणं पओअकम्म-समोदाणकम्माणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? गाणेगजीवं पडुच्च णस्थि अंतरं। आधाकम्मस्स अंतरं केवचिरं कालादो होदि ? जाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं। एगजीवं पडुच्च जहण्णण एगसमओ। उक्कस्सेण तिसमऊणा असंखेज्जा लोगा। बादरपुढविकिया । फिर निद्रा और प्रचलाकी वन्धव्युच्छित्ति करके मरा और देव हो गया। अन्तरकाल प्राप्त हो गया। इस प्रकार कियाकर्मका जघन्य अन्तरकाल प्राप्त हो जाता है। उत्कृष्ट अंतरकाल पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक एक हजार सागर प्रमाण है, क्योंकि, अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्तावाला एक विकलेन्द्रिय जीव सम्मच्छिम संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तकोंमें उत्पन्न हआ। छह पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हो, विश्राम करके और विशुद्ध होकर वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त हुआ। यहां क्रियाकर्मकी आदि दिखाई दी। फिर सबसे अल्प अन्तर्मुहुर्त काल तक क्रियाकर्मके साथ रहकर मिथ्यात्वको प्राप्त हो उसका अन्तर किया। अनन्तर पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक एक हजार सागरप्रमाण काल तक भ्रमण करके अन्तिम भवको ग्रहण करते समय पूर्वकोटिकी आयुवाले मनुष्यों में उत्पन्न हुआ। अनन्तर अन्तर्मुहूर्त काल शेष रहनेपर उपशमसम्यक्त्व और संयमको एक साथ प्राप्त हुआ। इस प्रकार क्रियाकर्मका अन्तरकाल लब्ध होता है । अनन्तर सासादन गुणस्थानको प्राप्त होकर मरा और एकेन्द्रिय हो गया । इस प्रकार पांच अन्तर्मुहूर्त कम अपनी उत्कृष्ट स्थिति प्रमाण क्रियाकर्मका उत्कृष्ट अन्तरकाल होता है। इसी प्रकार पंचेन्द्रिय पर्याप्तकके भी कहना चाहिये। इतनी विशेषता है कि जहां पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक एक हजार सागरप्रमाण उत्कृष्ट अन्तरकाल कहा है वहां सौ सागरपृथक्त्व कहना चाहिये । कायमार्गणाके अनुवादसे पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक और वायुकायिक जीवोंके प्रयोगकर्म और समवधानकर्मका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवों और एक जीवकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है । अधःकर्मका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं हैं । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy