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________________ १४४ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ( ५, ४, ३१. कालादो होदि ? जाणाजीवं पडुच्च पत्थि अंतरं। एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ। उक्कस्सेण तिसमऊणं सागरोमवसहस्सं पुव्वकोउिपुधत्तंणभहियं । इरियावहकम्मस्स अंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च णस्थि अंतरं। एगजीवं पडुच्च जहण्णण अंतोमुहुत्तं । उक्कस्सेण सागरोवमसहस्सं पुवकोडिपुधत्तेणभहियं । कुदो ? एक्को अट्ठावीससंतकम्मिओ एइंदियो पुव्वकोडाउएसु मणुस्सेसु उववण्णो । गम्भादि अवस्साणमुवरि वेदगसम्मत्तं संजमं च जुगवं पडिवण्णो । तदो अणंताणुबंधि विसंजोइय: दसणमोहणीयमवसामेदूण पुणो पमत्तापमत्तपरावत्तसहस्सं+ कादूण अपुव० अणियट्टि० सुहुम० उवसंतो जादो । तदो इरियावथकम्मस्स आदी दिट्टा । पुणो सुहमो होदूण अंतरिदो। सागरोवमसहस्सं पुवकोडिपुधत्तेणब्भहियमंतरिदूण अपच्छिमाए पुवकोडीए अंतोमुत्तावसेसे खीणकसाओ जादो । इरियावहकम्मस्स लद्धमंतरं । एवमेदेहि गब्भादिअटुवस्सेहि णवहि अंतोमुत्तेहि य ऊणस. गुक्कस्सटिदिमत्तअंतरुवलंभादो । तवोकम्मस्स वि एवं चेव । णवरि अट्टहि वस्सेहि बेहि अंतोमुहुत्तेहि य ऊणां सागरोवमसहस्सां पुन्वकोडिपुधत्तेणब्भ हियमुक्कस्सतरं होदि । किरियाकम्मस्स अंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीनं पडुच्च णत्थि अंतरं । एगजीनं पडुच्च जहण्णेण अन्तोमुहुत्तं । कुदो ? एक्को अप्पमत्तो होवूण अपुवो अपेक्षा अन्तर काल नहीं है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल तीन समय कम पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक एक हजार सागर है। ईर्यापथकर्मका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तरकाल पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक एक हजार सागर हैं, क्योंकि, अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्तावाला एक एकेन्द्रिय जीव पूर्वकोटिकी आयुवाले मनुष्योंमें उत्पन्न हुआ। गर्भसे लेकर आठ वर्षका होनेपर वेदकसम्यक्त्व और संयमको एक साथ प्राप्त हुआ। अनन्तर अनन्तानुबंधौकी विसंयोजना करके तथा दर्शनमोहनीयको उपशमा कर फिर प्रमत्त और अप्रमत्त गुणस्थानके हजारों परावर्तन करके अपूर्वउपशमक, अनिवृत्तिउपशमक, सूक्ष्मउपशमक और उपशान्तकषाय हुआ। यहां ईर्यापथकर्मका प्रारम्भ दिखाई दिया। फिर सूक्ष्मसापराय होकर उसका अन्तर किया। और पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक एक हजार सागर प्रमाण काल तक उसका अन्तर करके अन्तिम पूर्वकोटि के कालमें अन्तर्मुहूर्त शेष रहनेपर क्षीणकषाय हुआ । इस प्रकार ईर्यापथकर्मका अन्तर प्राप्त हो जाता है । इस प्रकार गर्भसे लेकर आठ वर्ष और नौ अन्तर्मुहूर्त कम अपनी उत्कृष्ट स्थितिप्रमाण अन्तरकाल प्राप्त होता है। तपःकर्मका अन्तरकाल भी इसी प्रकार है । इतनी विशेषता है कि इसका उत्कृष्ट अन्तरकाल आठ वर्ष और दो अन्तर्मुहुर्त कम पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक एक हजार सागरप्रमाण है । क्रियाकर्मका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है, क्योंकि, कोई एक मनुष्य अप्रमत्त होकर अपूर्वसंयत हुआ और क्रियाकर्मका अन्तर ४ का-ताप्रत्योः । विसंजोएदूण ' इति पाठः। * का-ताप्रत्योः । -मुवसामिय' इति पाठः : ताप्रती 'पमत्तापमत्तसहस्सं ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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