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१२८ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
( ५, ४, ३१. अंतोमहत्तेहि य ऊणपुवकोडिमेत्तइरियावथकम्मउक्कस्सकालुवलभादो। तवोकम्मस्स वि एवं चेव । णवरि गब्भादिअटुवस्सेहि ऊणिया पुत्वकोडी उक्कस्सकालो त्ति भाणिदव्वं ।
भवियाणुवादेण भवसिद्धियाणमोधभंगो। णवरि अणादि-अपज्जवसिदभंगो णस्थि । अभवसिद्धियाणं पओअकम्म-समोदाणकम्माणि णाणेगजीवं पडुच्च अणादि अपज्जवसिदाणि । सम्मत्ताणुवादेण सम्माइट्ठीणमोहिणाणिभंगो। गवरि इरियावथकम्मरस णाणाजीव पडुच्च सव्वद्धा। एगजीवं पडुच्च जहण्णण एगसमओ। उक्कस्सेण पुवकोडी देसूणा। एवं खइयसम्माइट्ठीणं पि वत्तव्वं । णवरि किरियाकम्मस्स एगजीनं पडुच्च जहणणेण अतोमहत्तं । कुदो ? अणंताणुबंधि विसंजोइय अप्पमत्तट्ठाणे दंसणमोहणीयं खविय सव्वलहुअंतोमहत्तं किरियाकम्मेणच्छिय* अपुव्वखवगपज्जाएण परिणयपढमसमए चेव गदकिरियाकम्मम्मि जीवे जहण्णकालवलंभादो। उक्कस्सेण देसूणदोपुवकोडोहि सादिरेयाणि तेत्तीसं सागरोवमाणि । कुदो ? एक्को देवो वा र इओ वा वेदगसम्माइट्ठी पुश्वकोडाउएसु मणुस्सेसु उववण्णो। गब्भादिअट्ठवस्साणमवरि अधापवत्तकरणं अपुवकरणं अणियट्टिकरणं च करिय कदकरणिज्जो होदूण खइयसम्माइट्ठी जादो। तदो पुत्वकोडि जीविदूण तेत्तीससागरोवमट्टिदिएसु देवेसुइस प्रकार गर्भसे आठ वर्ष और अन्तर्मुहुर्त न्यून एक पूर्वकोटि प्रमाण ईर्यापथकर्मका उत्कृष्ट काल उपलब्ध होता है। तपःकर्मका काल भी इसी प्रकार है। इतनी विशेषता है कि इसका गर्भसे लेकर आठ वर्ष कम पूर्वकोटिप्रमाण उत्कृष्ट काल होता है, एसा कहना चाहिये ।।
भव्यमार्गणाके अनुवादसे भव्यसिद्धिक जीवोंके सब पदोंका काल ओघके समान है। इतनी विशेषता है कि इनके कालका अनादि-अनन्त भग नहीं होता । अभव्यसिद्धिक जीवोंके प्रयोगकर्म और समवधान कर्मका काल नाना जीवों और एक जीवकी अपेक्षा अनादि-अनंत हैं।
सम्यक्त्वमार्गणाके अनुवादसे सम्यग्दृष्टियोंके सब पदोंका काल अवधिज्ञानियोंके समान है। इतनी विशेषता है कि इनके ईपिथकर्मका नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल कुछ कम एक पूर्वकोटि है । इसी प्रकार क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंके भी कहना चाहिये। इतनी विशेषता है कि क्रियाकर्मका एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है, क्योंकि, अनन्तानुबन्धिचतुष्कको विसयोजना करके और अप्रमत्त गुणस्थानमें दर्शनमोहनीयकी क्षपणा करके सबसे लघु अन्तर्मुहूर्त काल तक क्रियाकर्मके साथ रह कर जिस जीवने अपूर्वकरण क्षपक पर्या को प्राप्त होकर उसके प्रथम समयम ही क्रियाकर्म का अभाव कर दिया है उसके क्रियाकर्मका जघन्य काल उपलब्ध होता है। उत्कृष्ट काल कुछ कम दो पूर्वकोटि अधिक तेतीस सागर है, क्योंकि कोई देव या नारकी वेदकसभ्यग्दृष्टि जीव पूर्वकोटिप्रमाण आयुवाले मनुष्योंमें उत्पन्न हुआ। पुनः गर्भसे लेकर आठ वर्षके बाद अधःकरण, अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण इन तीन करणोंको करके कृतकृत्य वेदकसम्यदृष्टि होकर क्षायिकसम्यदृष्टि हुआ। तदनन्तर एक पूर्वकोटि काल तक जीवित रह कर तेतीस
४ ताप्रती · सव्वलहुं अंतोमहत्तं ' इति पाठ: 1 * प्रतिषु । किरियाकम्मेणट्ठिय ' इति पाठ ।
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