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५, ४, ३१.) कम्माणुओगद्दारे पओअकम्मादीणं कालपरूवणा ( १२७ कम्मं केवचिरं कालादो होदि? णाणाजीवं पडुच्च सम्बद्धा। एगजीवं पडुच्च जहण्णण अंतोमहत्तं । उक्कस्सेण छहि अंतोमहत्तेहि ऊणाणि तेत्तीसं सागरोवमाणि तीहि अंतोमुत्तेहि ऊणाणि सत्तारस सत्त सागरोवमाणि । तेउ-पम्मलेस्साणं पओअकम्मसमोदाणकम्म-किरियाकम्माणि केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा। एगजीवं पडुच्च जहण्णण पओअकम्म-समोदाणकम्माणमंत्तोमुहुत्तं । किरियाकम्मस्स एगसमओ। उक्कस्सेणादिल्लंतिमबेअंतोमहत्तेहि अंतोमहत्तणद्धसागरोवमेण च सादिरेयाणि बे-अट्ठारससागरोवमाणि । तवोकम्मं केवचिरं कालादो होदि ? जाणाजीवं पडुच्च सम्वद्धा। एगजीवं पडुच्च जहण्णण एगसमओ। उक्कस्सेण अंतोमहत्तं । एवं सुक्कलेस्साए । णवरि किरियाकम्मस्स एगजीवं पडुच्च जहण्णण अंतोमुत्तं । उक्कस्सेणादिल्लंतिमदोहि अंतोमहुत्तेहि सादिरेयाणि तेत्तीसं सागरोवमाणि । इरियावथ-तवोकम्माणि कंवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीगं पडुच्च सव्वद्धा । एगजीवं पडुच्च जहणेण एगसमओ अतोमुत्तं । उक्कस्सेण पुव्वकोडी देसूणा । कुदो ? इरियावथकम्मस्त एक्को देवो वा रइओ वा खइयसम्माइट्ठी पुव्वकोडाउएसु मणुस्सेसु उववण्णो। गम्भादिअट्टवस्साणमुवरि अप्पमत्तभावेण संजमं पडिवण्णो । तदो पमत्तो अप्पमत्तो अपुव्वखवगो अणियट्टिखवगो सुहुमखवगो होदण खीणकसाओ जादो। इरियावथकम्मस्स आदी विट्ठा। तदो सजोगिजिणो होदूण जाव पुव्वकोडि विहरदि ताव इरियावथकम्मं लब्भदि । एवं गब्भादिअटुवस्सेहि अधिक सत्रह सागर दो अन्तर्मुहूर्त अधिक सात सागर है। क्रियाकर्मका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट काल छह अन्तर्मुहूर्त कम तेतीस सागर, तीन अन्तर्मुहुर्त कम सत्रह सागर और तीन अन्तर्मुहूर्त कम सात सागर है । पीत लेश्या और पद्म लेश्यावाले जीवोंके प्रयोगकर्म, समवधानकर्म और क्रियाकर्मका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है । एक जीवकी अपेक्षा प्रयोगकर्म और समवधानकर्मका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और क्रियाकर्मका जघन्य काल एक समय है। उत्कृष्ट काल आदि और अन्तके दो अन्तर्मुहूर्त अधिक तथा अन्तर्मुहूर्त न्यून आधा सागर अधिक दो सागर और अठारह सागर है । तपःकर्मका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सद काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। इसी प्रकार शुक्ल लेश्यामें जानना चाहिये। इतनी विशषता है कि क्रियाकर्मका एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल आदि और अन्तके दो अन्तर्मुहूर्त अधिक तेतीस सागर है। ईपिथकर्म और तपःकर्म का कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय और अन्तर्मुहुर्त है । तथा उत्कृष्ट काल कुछ कम एक पूर्वकोटि है, क्योंकि कोई देव या नारकी क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीव पूर्वकोटिप्रमाण आयुवाले मनुष्योंमें उत्पन्न हुआ। वहां गर्भसे लेकर आठ वर्षके बाद अप्रमत्तभावसे संयमको प्राप्त हुआ। तदनन्तर प्रमत्त, अप्रमत्त, अपूर्वक्षपक, अनिवृत्तिक्षपक और सूक्ष्मसाम्परायिकक्षपक होकर क्षीणकषाय हुआ। यहांसे ईर्यापथ कर्मका प्रारम्भ दिखाई देता हैं। तदनंतर सयोगकेवली होकर जब तक पूर्वकोटि काल है तब तक ईर्यापथकर्म उपलब्ध होता है।
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