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________________ १२६ / छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ( ५, ४, ३१. जीव ( पडुच्च सव्वद्धा ।) एगजीवं पडुच्च जहणेण एगसमओ अंतोमुहुत्तं । उक्कस्सेण पुव्वकोडी देसूणा । णवरि जहाक्खादसंजदेसु किरियाकम्मं णत्थि । सामाइय छेदोद्वावणपरिहार संजदाणमिरियावथकम्मं णत्थि । सुहुमसांपराइयसुद्धिसंजदाणं पओअकम्म-समोदाणकम्म तवोकम्माणि केवचिरं कालादो होंति ? णाणेगजीवं पडुच्च जहणंण एगसमओ, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । संजदासंजदाणं मणपज्जवभंगो | णवरि किरियाकम्मरस पडुच्च जहण्णेण अंतोमहुत्तं । इरियावत्थकम्मं तवोकम्मं णत्थि । असंजदाणं मदिअण्णाणिभंगो। णवरि किरियाकम्मं एगजीवं पडुच्च जहणेण अंतोमहूत्तं । उक्कस्सेण तेत्तीसं सागरोवमाणि अंतोमुहुत्तूणपुण्वको डिसादिरेयाणि । दंसणाणुवादेण चक्खुदंसणीणं तसपज्जत्तभंगो। णवरि इरियावथकम्मस्स मणपज्जवभंगो। अचक्खुदंसणीणमोघो । णवरि इरियावत्थकम्मस्स जहणणे एगसमओ । उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ओधिदंसणी मोहिणाणिभंगो । लेस्साणुवादेण किण्ह णील काउलेस्सियाणं पओअकम्म- समोदाणकंमाणि केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा । एगजीव पडुच्च जहण्णेण अंतोमहत्तं । उक्कस्सेण तेत्तीस सत्तारस सत्त सागरोवमाणि दोहि अंतोमहुत्तेहि सादिरेयाणि । ' नाना जीवों की अपेक्षा सब काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय ओर अंतर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट काल कुछ कम एक पूर्वकोटि हैं। इतनी विशेषता है कि यथाख्यातसंयत जीवोंके क्रियाकर्म नहीं होता । तथा सामायिकसंयत, छंदोपस्थापना संयत और परिहारविशुद्धिसंयत tath पथकर्म नहीं होता । सूक्ष्मसाम्परायिकशुद्धिसंयत जीवोंके प्रयोगकर्म, समवधानकर्म और तपःकर्मका कितना काल है ? नाना जीवों और एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । सयतासंयत जीवोंके सम्भव पदोंका काल मन:पर्ययज्ञानके समान है । इतनी विशेषता है कि यहां क्रियाकर्मका एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है । यहां ईर्यापथकर्म और तपः कर्म नहीं होते । असंयत जीवोंकी मत्यज्ञानी जीवोंके समान भंग है । इतनी विशेषता है कि इनके क्रिया का एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त न्यून एक पूर्वकोटि अधिक तेतीस सागर है । दर्शन मार्गणा के अनुवादसे चक्षुदर्शनवाले जीवोंके सब पदोंका काल त्रस पर्याप्त जीवोंके समान है । इतनी विशेषता है कि इनके ईर्यापथका काल मन:पर्ययज्ञानवाले जीवों के ईर्यापथकर्मके कालके समान है । अचक्षुदर्शनवाले जीवोंके सब पदोंका काल ओघके समान हैं । इतनी विशेषता है कि ईर्यापथकर्मका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । अवधिदर्शन वाले जीवोंके सब पदोंका काल अवधिज्ञानवाले जीवोंके सब पदोंके कालके समान है । लेश्यामार्गणाके अनुवाद से कृष्ण, नील और कापोत लेश्यावाले जीवोंके प्रयोगकर्म और समवधान कर्मका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट काल दो अन्तर्मुहूर्त अधिक तेतीस सागर, दो अन्तर्मुहूर्त XXX का ताप्रत्योः जहाक्खा द० सु' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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