SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 157
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२४) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ( ५, ४, ३१. कसायाणुवादेण चदुण्णं कसायाणं मणजोगीणं भंगो । अकसाईणमवगदवेदभंगो । णाणाणवादेण मदिअण्णाणि-सुदअण्णाणीणं पओअकम्म-समोदाणकम्माणि केवचिरं कालादो होंति? णाणाजीवं (पडुच्च सव्वद्धा।) एगजीवं पडुच्च तिषिणभंगा। तत्थ जो सो सादिओ सपज्जवसिदो तस्स जहण्णण अंतोमुत्तं । उक्कस्सेण अद्धपोग्गलपरियट्टो देसूणो । विभंगणाणीसु पओअकम्म-समोदाणकम्माणि केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं (पडुच्च सव्वद्धा ।) एगजीवं पडुच्च जहण्णण एगसमओ । एसो कत्थुवलब्भदे ? देव-णेरइएसु सासणं गंतूण बिदियसमए मुदजीवम्मि । उक्कस्सेण तेत्तीसं सागरोवमाणि सत्तमाए पुढवीए आदिल्लअंतोमुहुतेण ऊणाणि । आभिणिबोहिय०-सुद० ओहिणाणाणं पओअकम्म--समोदाणकम्म-किरियाकम्मागि केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण लिय अप्रमत्त होकर पुनः उपशमश्रेणिपर आरोहण करता है उसके क्रियाकर्मका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त प्राप्त होता है । तथा नपुंसकवेदवाले जीवोंके जघन्य काल एक समय यथासम्भव स्त्रीवेदवाले जीवोंके समान घटित कर लेना चाहिये । अपगतवेदवाले जीवोंके सम्भव' सब पदोंका एक जीवकी अपेक्षा एक समयप्रमाण जघन्य काल एक समय तक अपगतवेदी रखकर बादम मरण करानेसे प्राप्त होता है । इस प्रकार एक जीवको अपेक्षा सब पदोंका जघन्य काल एक समय कहां किस प्रकार घटित होता है, इसका विचार किया। शेष कथन सुगम है। कषायमार्गणाके अनवादसे चारों कषायवाले जीवोंके सब पदोंका काल मनोयोगी जीवोंके सब पदोंके कालके समान है। और कषायरहित जीवोंके सब पदोंका काल अपगतवेदवाले जीवोंके सब पदोंके कालके समान है। ज्ञानमार्गणाके अनुवादसे मत्यज्ञानी और श्रुतज्ञानी जीवोंके प्रयोगकर्म और समवधानकर्मका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है । एक जीवको अपेक्षा तीन भंग होते हैं। उनमें जो सादि-सान्त भंग है उसका जघन्य काल अन्तर्मुहुर्त और उत्कृष्ट काल कुछ कम अर्ध पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है। विभंगज्ञानी जीवोंमें प्रयोगकर्म और समवधानकर्मका कितना काल है? नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है। शंका - यह जघन्य काल कहांपर प्राप्त होता है ? समाधान - देव और नारकियोंसे जो जीव सासादन गुणस्थानको प्राप्त होकर दूसरे समयमें मरकर अन्य गतिमें चला जाता है उसके यह जघन्य काल प्राप्त होता है। उत्कृष्ट काल प्रारम्भके अन्तर्मुहुर्तसे न्यून तेतीस सागर है जो सातवीं पृथिवीमें प्राप्त होता है । आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंके प्रयोगकर्म, समवधानकर्म और क्रियाकर्मका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल हैं । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है। उत्कृष्ट काल साधिक छयासठ सागर है। तपःकर्मका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल अन्तर्मुहुर्त है । उत्कृष्ट काल कुछ कम एक पूर्वकोटि है। ईर्यापथकर्मका कितना काल है ? नाना जीवों और एक * ताप्रती सागरोवमाणि ] सत्तमाए ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy