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५, ४, ३१. ) कम्माणुओगद्दारे पओअकम्मादीणं कालपरूवणा ( १२३ एगजीवं पडुच्च जहण्णण एगसमओ* अंतोमहत्तं । उक्कस्सेण आदिल्लेहि तीहि अंतोमहुत्तेहि ऊणाणि पणवण्णपलिदोवमाणि बेपुव्वकोडीहि तेत्तीससागरोवमेहि य सादिरेयाणि छावटिसागरोवमाणि। णवंसयवेदाणं पओअकम्म-समोदाणकम्माणि केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं (पडुच्च सव्वद्धा।) एगजीवं पडुच्च जहण्णण एगसमओ। उक्कस्सेम अणंतकालमसंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा। तवोकम्मस्स इथिवेदमंगो। किरियाकम्म केवचिरं कालादो होदि? जाणाजीवं (पडुच्च सव्वद्धा।) एगजीवं पडुच्च जहणण एगसमओ। उक्कस्सेण तेत्तीस सागरोवमाणि देसूणाणि । अवगदवेदाणं पओअकम्म-समोदाणकम्माणि इरियावहकम्म-तवोकम्माणि केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं (पडुच्च सव्वद्धा।) एगजीनं पड़च्च जहण्णेण एगसमओ। उक्कस्सेण पुवकोडी देसूणा । कितता काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय और अन्तर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट काल आदिके तीन अन्तर्मुहर्त कम पचपन पल्य तथा दो पूर्वकोटि और तेतीस सागर अधिक छयासठ सागर है। नपुंसकवेदवाले जीवोंके प्रयोगकर्म औरसमवधान कर्मका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है । एक जीव की अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है। तप:कर्मका भंग स्रीवेद जीवोंके समान है। क्रियाकर्मका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल कुछ कम तेतीस सागर है। अपगतवेदवाले जीवोंके प्रयोगकर्म, समवधानकर्म, ईर्यापथकर्म और तप:कर्मका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल कुछ कम पूर्वकोटि प्रमाण है।
विशेषार्थ- यहां वेदमागणाकी अपेक्षा सब कर्मोके कालका निर्देश किया गया है। स्त्रीवेद जीवोंके प्रयोगकर्म और समवधानकर्मका एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय बतलानेका कारण यह है कि जो स्त्रीवेद जीव उपशमश्रेणिपर आरोहण करने के बाद उतरते समय एक समयके लिये स्त्रीवेद होकर मरणकर देव हो जाता है उसके यह जघन्य काल एक समय पाया जाता है। पुरुषवेदीके यह काल घटित नहीं होता, क्योंकि, पुरुषवेदी मरकर देवोंमें उत्पन्न होनेपर पुरुषवेदी ही रहता है, इसलिये पुरुषवेदी जीवके उक्त दोनों पदोंका जघन्य काल अन्तर्मुहुर्त कहते समय उपशमश्रेणिसे उतारकर पुरुषवेदके उदयसे सम्पन्न करे और अन्तर्मुहुर्त कालके भीतर द्वितीय बार उपशमश्रेणिपर आरोहण कराके अपगतवेद अवस्थामें ले जाय । इस प्रकार पुरुषवेदी जीवके एक जीवको अपेक्षा उक्त दोनों पदोंका जघन्य काल अन्तर्मुहुर्त प्राप्त हो जाता है । एक जीवकी अपेक्षा तपःकर्मका जघन्य काल एक समय दोनों वेदवाले जीवोंको उपशमश्रेणिसे उतारकर और एक समयके लिये सवेदी बनाकर बादमें मरण कराके घटित करना चाहिये । जो स्त्रीवेद जीव उपशमश्रेणिसे उतरकर और एक समयके लिये अप्रमत्त होकर मरणकर देव होता है उसके एक जीवकी अपेक्षा क्रियाकर्मका जघन्य काल एक समय प्राप्त होता है । इसी प्रकार जो पुरुषवेदी जीव उपशमश्रेणिसे उतरकर और अन्तर्मुहुर्त कालके
* काप्रती ‘णाणाजीवं० एगजीवं जह० एगजीवं० एगसमओ' इति पाठ: 1 Jain Education International
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