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________________ १२२) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ( ५, ४, ३१. कालादो होंति ? णाणेगजीवं पडुच्च जहण्णण एगसमओ। उक्कस्सेण अंतोमहत्तं । आहारमिस्सकायजोगीणमेवं चेव वत्तव्वं । णवरि चहण्णुक्कस्सेण अंतोमुहुतं, तत्थ मरण-जोगपरावत्तीणमभावादो। आहारदुगम्मि आधाकम्मस्स ओघभंगो। कम्मइयकायजोगीसु पओअकम्म-समोदाणकम्माणि केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा। एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ। उक्कस्सेण तिण्णि समया । इरियावह तवोकम्माणि केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण तिणि समया । उक्कस्सेण संखेज्जा समया। एगजीवं पडुच्च जहण्णक्कस्सेण तिणि समया। किरियाकम्मं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पड़च्च जहण्णेण एगसमओ। उक्कस्सेण आवलियाए असंखेज्जदिभागो। एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ। उक्कस्सेण बे समया। वेवाणुवादेण इत्थिवेद-पुरिसवेदाणं पओअकम्म-समोदाणकम्माणि केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा। एगजीवं पडुच्च जहणेज एगसमओ अंतोमुहुत्तं । उक्कस्सेण पलिदोवमसदपुधत्तं सागरोवमसदपुधत्तं। तवोकम्म केवचिरं कालादो होदि? णाणाजीवां पडुच्च सम्वद्धा। एगजीनं पडुच्च जहण्णेण* एगसमओ। उक्कस्सेण पुव्वकोडी देसूणा । किरियाकम्मं केवचिरं कालादो होदि? जाणाजीगं पडुच्च सव्वद्धा। है ? नाना जीवों और एक जीवकी अपेक्षा जधन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तमहर्त है। आहारमिश्रकाययोगी जीवोंके उक्त सब पदोंका काल इसी प्रकार कहना चाहिये । इतनी विशेषता है कि यहांपर जघन्य और उत्कृष्ट दोनों प्रकारका काल अन्तर्महर्त है, क्योंकि इस योगके रहते हुए न तो मरण होता है और न योगका परिवर्तन भी होता है। आहारद्विकमें अध:कर्मका काल ओघके समान है। कार्मणकाययोगवाले जीवोंमें प्रयोगकर्म और समवधानकर्मका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल तीन समय है। ईर्यापथकर्म और तपःकर्मका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य काल तीन समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट काल तीन समय है। क्रियाकर्मका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है। वेदमार्गणाके अनुवादसे स्त्रीवेद और पुरुषवेदी जीवोंके प्रयोगकर्म और समवधानकर्मका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय और अन्तर्मुहुर्त है और उत्कृष्ट काल सौ पल्योपमपृथक्त्व प्रमाण और सौ सागरोपमपृथक्त्वप्रमाण है । तपःकर्मका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल कुछ कम पूर्वकोटिप्रमाण है । क्रियाकर्मका ४ काप्रती 'णाणाजीवं पडुच्च जह• ', ताप्रती ‘णाणाजीव प० जह०' इति पाठः । ताप्रतावतोऽग्रे 'वा' इत्यधिक: पाठोऽस्ति। काप्रती एगजीवेण जह० ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ..
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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