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________________ ५, ४, ३१. ) कम्माणुओगद्दारे पओअकम्मादीणं कालपरूवणा ( १२१ संखेज्जसमयाणमुवलंभादो। एगजीवं पडुच्ज जहण्णुक्कस्सेण एगसमओ। किरियाकम्म केवचिरं कालादो होदि? णाणाजीवं पडुच्च जहणेण अंतोमहत्तं । उक्कस्सेण वि अंतोमुहुत्तं चेव । णवरि जहण्णादो उक्कस्सं संखेज्जगणं, भूओकालवलंभादो। एगजीवं पडुच्च जहण्णण अंतोमहत्तं । एदं कत्थुवलब्भदे*? छट्ठीदो पुढवीदो आगंतूण मणस्सेसु उववण्णम्मि । उक्कस्सेण वि अंतोमहत्तं चेव । सव्वसिद्धीदो आगंतूण मणुस्सेसु उववण्णम्मि एसो उक्कस्सकालो घेत्तत्वो। वेउविमिस्सकायजोगीसु पओअकम्म-समोदाणकम्म-किरियाकम्माणि केवचिरं कालादो होंति? जाणाजीवं पडुच्च जहणेण अंतोमहत्तं । उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो। एमजीवं पडुच्च जहण्णण अंतोमहत्तं तं कत्थुवलब्भदे ? सम्वसिद्धिम्हि उववण्णछम्मासखवणगिलाणसाहुम्मि । उक्कस्सकालो वि अंतोमुहुत्तं चेव । एसो कालो सत्तमाए पुढवीए उप्पण्णम्हि सवचिरेण कालेण पज्जत्ति गदचक्कहरम्मि उवलब्भदे । णवरि किरियाकम्मस्स पढमाए पुढवीए उप्पण्णसम्माइट्ठिम्हि उवकस्सकालो वत्तव्वो। ___ आहारकायजोगीसु पओअकम्म-समोदाणकम्म-तवोकम्म-किरियाकम्माणि केवचिरं समुद्धातको प्राप्त हो रहे हैं उनके संख्यात समय पाये जाते हैं । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है। क्रियाकमका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट काल भी अन्तर्मुहूर्त ही है। इतनी विशेषता है कि जघन्यसे उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है, क्योंकि, यह बहुत काल पाया जाता है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल अन्तर्मुहुर्त है । शंका- यह कहां पाया जाता है? समाधान- यह छठी पथिवीसे आकर मनुष्योंमें उत्पन्न हुए जीवके पाया जाता है? उत्कृष्ट काल भी अन्तर्मुहूर्त ही है । सर्वार्थसिद्धिसे आकर मनुष्योंमें उत्पन्न हुए जीवके यह उत्कृष्ट काल ग्रहण करना चाहिए । वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंमें प्रयोगकर्म, समवधानकर्म और क्रियाकर्मका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल अन्तर्मुहुर्त है। शंका- यह काल कहांपर उपलब्ध होता है ? समाधान- छह मास तक क्षपणा करनेवाला जो गिलान साधु सर्वार्थसिद्धिके देवोंमें उत्पन्न होता है उसके यह काल उपलब्ध होता है ? उत्कृष्ट काल भी अन्तर्मुहूर्त ही है । जो चक्रधर मरकर सातवीं पृथिवीमें उत्पन्न होकर अति दीर्घ काल द्वारा पर्याप्तियोंको समाप्त करता है उस नारकी जीवके यह काल उपलब्ध होता है । इतनी विशेषता है कि क्रियाकर्मका उत्कृष्ट काल मरकर प्रथम पृथिवीमें उत्पन्न हुए सम्यग्दृष्टि जीवके कहना चाहिये। आहारककाययोगियोंमें प्रयोगकर्म, समवधानकर्म, तपःकर्म और क्रियाकर्मका कितना काल २ काप्रती ' कत्थुवलंभादो ' इति पाठः। . प्रतिषु 'सव्वट्ठसिद्धीदो ' इति पाठः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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