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________________ १२० ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड ( ५, ४, ३१. आधाकम्मस्स ओघभंगो। वेउव्वियकायजोगीसु पओअकम्म समोदाणकम्म-किरियाकम्माणि केचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पड़च्च सव्वद्धा। एमजीवं पड़च्च जहण्णेण एगसमओ । उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । कायजोगीसु पओअकम्म-समोदाणकम्माणि केवचिरं कालादो होति ? णाणजीवं पडुच्च सव्वद्धा । एगजीवं पडुच्च जहगणेण अंतोमहत्तं । उक्कस्सेण अणंतकालमसंखेज्जा पोग्गल परियट्टा । सेसपदाणमोघभंगो। णवरि किरियाकम्मं जहण्णमंतोमुत्तं । एवमोरालयकायजोगीणं । णवरि जम्हि अणंतकालं तम्हि बावीसवस्ससहस्साणि अंतोमहत्तणाणि । ओरालियमिस्सकायजोगीस पओअकम्म-समोदाणकम्माणि केवचिरं कालादो होति? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा । एगजीवं पडुच्च जहणेण एगसमओ। कुदो? कवाडग. दकेवलिम्हि तदुवलंभादो । उक्कस्सेण अंतोमहतं । तं कत्थवलब्भदे * ? सब्वटसिद्धीदो आगंतूण मणुस्सेसु उप्पण्णम्मि। इरियावह तवोकम्माणि केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं० जहण्णण एगसमओ कुदो? कवाडगदकेरलिम्हि तदुबलभादो। उक्कस्सेण संखेज्जा समया। कुदो? ओदरण चडणवावाराणं कवाडं पडिवण्णेसु सजोगिजिणेसु भी काल इसी प्रकार कहना चाहिये। अधःकर्मका काल ओषके समान है। वैक्रियिककाययोगियोंमें प्रयोगकर्म, समवधानकर्म और क्रियाकर्मका कितना काल है ? नानाजीवोंकी अपेक्षा सब काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है । और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहुर्त है। काययोगियों में प्रयोगकर्म और समवधानकर्मका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल अन्तर्मुहुर्त है और उत्कृष्ट काल अनन्त काल हैं जो असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनोंके बराबर है। शेष पदोंका काल ओघके समान है। इतनी विशेषता है कि क्रियाकर्मका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है । इसी प्रकार औदारिककाय योगी जीवोंके सब पदोंका काल कहना चाहिये । इतनी विशेषता है कि जहां अनन्त काल है वहां अन्तर्मुहूर्त कम बाईस हजार वर्ष कहना चाहिये। औदारिकमिश्रकाययोगियोंमें प्रयोगकर्म और समवधानकर्मका कितना काल है? नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है, क्योंकि कपाट - समुद्धातको प्राप्त केवली जिनके वह पाया जाता है । उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहर्त है । शंका- यह कहां पाया जाता है ? समाधान- सर्वार्थसिद्धिसे आकर मनुष्योंमें उत्पन्न हुए जीवके वह पाया जाता है । ईर्यापथकर्म और तप.कर्मका कितता काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है, क्योंकि कपाटसमुद्धातको प्राप्त केवली जिनके वह पाया जाता है । उत्कृष्ट काल संख्यात समय है, क्योंकि जो सयोगी जिन निरन्तर उतरने और चढनेके व्यापार द्वारा कपाट अ-आप्रत्यो। 'तं कुदो लब्भदे' इति पाठः । ताप्रती ' णाणाजीवं० एगजीवं० जहणणेण अ-आ-काप्रतिष ' णाणाजीवं पड़च्च सव्वद्धा एगजीवं पड़च्च जहण्णेण ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org .
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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