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________________ ५, ४, ३१. ) कम्माणुओगद्दारे पओअकम्मादीणं कालपरूवणा ( ११९ पडुच्च सव्वद्धा। एगजीवं पड़च्च जहण्णेण खहाभवग्गहणं । उक्कस्सेण कम्मट्टिदी। तेसिं चेव पज्जत्ताणं पओअकम्म-समोदाणकम्माणि केवचिरं कालादो होंति ? गाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा। एगजीवं पडुच्च जहणेण* अंतोमहत्तं । उक्कस्सेण वि अंतोमहत्तं । तेसि चेव अपज्जत्ताणं पओअकम्म-समोदाणकम्माणि केवचिरं कालादो होति ? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा। एगजीवं पडुच्च जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं । उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । (तसकाइय.) तसकाइयपज्जत्ताणं पओअकम्म-समोदाणकम्माणि केवचिरं कालादो होति?णाणाजीवं पडुच्च सम्वद्धा। एगजीवं पड़च्च जहण्णेण खुद्दाभवम्गहणं अंतोमुहुत्त। उक्कस्सेण बेसागरोवमसहस्साणि पुव्वकोडिपुधत्तेणब्भहियाणि बसागरोवमसहस्साणि । सेसपदाणमोघमंगो। तसकाइयअपज्जत्ताणं पओअकम्म-समोदाणकम्माणि केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा। एगजीवं पडुच्च जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं। उक्कस्सेण असीदि-सट्टि दाल-चदुवीसअंतोमहत्ताणं संखेज्जाणं समासमेत्ता । जोगाणवादेण पंचमणजोगि पंचवचिजोगीणं पओअकम्म-समोदाणकम्माणि केवचिर कालादो होंति? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा। एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ*। उक्कस्सेण अंतोमुत्तं । इरियावथ-तवो-किरियाकम्माणं पि एवं चेव वत्तन्वं । प्रमाण है और उत्कृष्ट काल कर्मस्थितिप्रमाण है । उन्हींके पर्याप्त जीवोंके प्रयोगकर्म और समवधानकर्मका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल अन्तर्मुहुर्त है और उत्कृष्ट काल भी अन्तर्मुहर्त है। उन्हींके अपर्याप्त जीवोंके प्रयोगकर्म और समवधानकर्मका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है। एक जीवकी अपेक्षा जधन्य काल क्षुद्रक भवग्रहणप्रमाण है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। त्रसकायिक और त्रसकायिक पर्याप्त जीवोंके प्रयोगकर्म और समवधानकर्मका कितना काल हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल क्षुद्रक भवग्रहणप्रमाण और अन्तर्मुहुर्त है । तथा उत्कृष्ट काल पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक दो हजार सागर और पूरा दो हजार सागर है। शेष पदोंका काल ओघके समान है। त्रसकायिक अपर्याप्तकोंके प्रयोगकर्म और समवधानकर्मका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल क्षुद्रक भवग्रहणप्रमाण है और उत्कृष्ट काल अस्सी, साठ, चालीस और चौबीस संख्यात अन्तर्मुहुर्तीका जितना जोड हो उतना है। ___ योगमार्गणाके अनुवादसे पांचो मनोयोगी और पांचों वचनयोगी जीवोंके प्रयोगकर्म और समवधानकर्मका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल हैं। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। ईर्यापथकर्म तपःकर्म और क्रियाकर्मका प्रतिषु — कम्मट्ठिदी ' इत्येतस्यस्थाने ' अंगुलस्स असंखेज्जदिभागो असंखेज्जाओ ओस प्पिणिउस्सप्पिणीओ ' इति पाठ । आप्रती ' अंतोमुहुत्तं इत्यत आरभ्य 'जहण्णेण पदपर्यन्तः पाठत्रुटितोऽस्ति । . प्रतिष - वि अंतोमहत्तं ' इत्येतस्य स्थाने संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि ' इति पाठः। ताप्रती 'छमासमेत्ता' इति पाठ: 1 *ताप्रती जाणाजीवं० एगजीवं० एगसमओ ' इति पाठः ] अस्मिन् प्रकरणेऽन्यत्रापि च ताप्रती ' णाणाजीवं पडुच्च सम्बद्धा , इत्येतस्य स्थाने 'णाणाजीवं० , इति पाठः 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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