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________________ ११२ ) छक्खंडागमे वम्गणा-खंड णिग्गमसंभवादो। सत्तमीए जादिविसेसेण* तदभावादो। तिरिक्खगदीए तिरिक्खेसु पओअकम्म-समोदाणकम्माणि केवचिरं कालादो होंति? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा। एगजीवं पडुच्च जहण्णण खुद्दाभवग्गहणं । उक्कस्सेण अणंतकालमसंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । आधाकम्मं केवचिरं कालादो होदि ? णाणा. जीवं पडुच्च सव्वद्धा। एगजीवं पडुच्च जहण्णण एगसमओ, उक्कस्सेण असंखेज्जा लोगा। एवं सव्वमग्गणातु आधाकम्म यन्वं । किरियाकम्मं केवचिरं कालादो होदि ? जाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा। एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमहत्तं, उक्कस्सेण तिण्णि पलिदोवमाणि संपुण्णाणि । कुदो? मणुसम्मि दाणेण वा दाणाणमोदेण वा तिरिक्खाउअंबंधिय पुणो खइयसम्माइट्ठी होदूण देवकुरु-उत्तरकुरवेसु उपज्जिय तत्थ तिण्णि पलिदोवमाणि किरियाकम्ममणुपालेदूण देवेसु उवरणम्मि संपुण्णतिणिपलिदोवममेत्तकिरियाकम्मकालवलंभादो । (पचिदियतिरिक्ख-) पंचिदियतिरिक्खपज्जत्त-चिदियतिरिक्खजोणिणोसु पओअकम्म-समोदाणकम्माणि केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा। एगजीवं पडुज्च जहण्गेण खुद्दाभवग्गहणमंतोमुहुत, उक्कस्सेण तिणि पलिदोवमाणि समाधान - यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, इन प्रथमादि छह पृथिवियोंमेंसे सम्यक्त्वके साथ निर्गमन सम्भव है; किन्तु सातवी पृथिवीमें जातिविशेष के कारण वहांसे सम्यक्त्वके साथ निर्गमन सम्भव नहीं है। यही कारण है कि एक आदि सागरमेंसे छह अन्तर्मुहूर्तोंकी हानि नहीं की। तिर्यंचगतिमें तिर्यचोंमें प्रयोगकर्म और समवधानकर्मका कितना काल हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल क्षुद्रक भवग्रहण प्रमाण है और उत्कृष्ट काल अनन्त काल है जो असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है । अध:कर्मका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल असंख्यात लोकप्रमाण है । इसी प्रकार सब मार्गणाओंमें अधःकर्मका काल जानना चाहिये । क्रियाकर्मका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल अन्तर्महर्त है और उत्कृष्ट काल पूरा तीन पल्य प्रमाण है, क्योंकि, मनुष्य पर्याय में रहते हुए दान देनेसे या दानकी अनुमोदना करनेसे तिर्यंचायु का बन्ध करके और इसके बाद क्षायिकसम्यग्दृष्टि होकर जो देवकुरु या उत्तरकुरुमें उत्पन्न होकर और वहां तीन पल्य काल तक क्रियाकर्मका पालन देवोंमें उत्पन्न होता है उस तिर्यचके क्रियाकर्मका पूरा तीन पल्य काल उपलब्ध होता है। ___पचेन्द्रिय तिर्यंच, पंचेन्द्रिय तिर्यंच पर्याप्त और पचेन्द्रिय तिर्यंच योनिनी जीवोंमें प्रयोगकर्म और समवधानकर्म का कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल क्षुद्रक भवग्रहणप्रमाण और अन्तर्मुहुर्त है तथा उत्कृष्ट काल पूर्वकोटिपृथक्त्व * ताप्रतौ 'सत्तमीए च छण्णभंतोमुहत्ताण पि, जादिविसेसेण ' इति पाठः । 0 आ-का-ताप्रतिषु 'पंचिंदियतिरिक्ख-' इत्येतत्पदं नोपलभ्यते । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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