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________________ १०२) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड मणसगदीए मणुस-मणुसपज्जत्त-मणु सिणीसु सव्वपदाणमदीद-वट्टमाणेण खेत्तभंगो। णवरि पओअकम्म समोदाणकम्माणमदीदेण सबलोगो। मणुस्सअपज्जत्ताण पंचिदियतिरिक्खअपज्जतभंगो। ___ देवगदीए देवेसु पओअकम्म समोदाणकम्म-किरियाकम्माण वट्टमाणेण लोगस्स असंखेज्जदिभागो । अदीदेण अट्ठ-णव चोद्दसभागा वा देसूगा। णवरि किरियाकम्मस्स अदीदेण अट्ट चोद्दसभागा वा देसूणा । एवं भवणवासिय-वाणवेंतर-जोदिसिथसोहम्मोसाणाणं वत्तव्वं । सणक्कुमारप्पहुडि जाव सहस्सारे ति सव्वपदाणमेसेव भंगो। णवरि णव चोद्दस भागा णत्थि । आणद-पाणद-आरण-अच्चुददेवाणं सव्वपदाणं पि छच्चोहसभागा देसूणा । अट्ट चोइस भागा णस्थि । हेट्ठिम-हेटिमगेवज्जप्पहुडि जाव सम्वसिद्धि ति ताव तिण्णं पि पदाणमदीद-वट्टमाणेण लोगस्स असंखेज्जदिभागो। इंदियाणुवादेण एइंदियाणं पओअकम्म-समोदाणकम्म-आधाकम्माणमदीदवट्टमाणेण सव्वलोगो। विलिदियाणं पंचिदियतिरिक्खअपज्जत्तभंगो। पंचिदिय चिदियपज्जत्त० पओअकम्म -- - समोदाणकम्माणं वट्टमाणेण लोगस्स असंखेन्जदिभागो। अदीदेण अट्ठ चोद्दसभागा वा देसूणा सव्वलोगो वा । केवलिणो पडुच्च लोगस्स असंखेज्जदिभागो असंखेज्जा वा भागा सव्वलोगो श। आधाकम्मस्स अदीद वट्टमाणेण सव्वलोगो। इरियावह-तवोकम्माण मनुष्य गतिमें मनुष्य, मनुष्प पर्याप्त और मनुष्यनियों में सब पदोंका अतीत और वर्तमान स्पर्शन क्षेत्रके समान है। इतनी विशेषता है कि प्रयोगकर्म और समवदानकर्मका अतीत स्पर्शन सब लोक है । तथा मनुष्य अपर्याप्तकोंका पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्तकोंके समान स्पर्शन है। देवगतिमें देवोंमें प्रयोगकर्म, समवदानकर्म और क्रियाकर्मका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । अतीत स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह, भागप्रमाण व कुछ कम नौ बटे चौदह भाग प्रमाण है। किन्तु इतनी विशेषता है कि क्रियाकर्मका अतीत स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह भाग प्रमाण है । इसी प्रकार भवनवासी, व्यंतर, ज्योतिषी और सौधर्म ऐशान स्वर्गके देवोंके कहना चाहिये । सानत्कुमारसे लेकर सहस्रार तकके देवोंमें सब पदोंका यही स्पर्शन है । किन्तु इतनी विशेषता है कि यहां नौ बटे चौदह भागप्रमाण स्पर्शन नहीं है । आनत, प्राणत, आरण और अच्युत कल्पके देवोंके सभी पदोंका स्पर्शन कुछ कम छह बटे चौदह भाग प्रमाण है । यहां आठ बटे चौदह भाग प्रमाण स्पर्शन नहीं है । अधस्तन अधस्तन ग्रैवेयकसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंके तीनों ही पदोंका अतीत और वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है। इन्द्रियमार्गणाके अनुवादसे एकेन्द्रियों के प्रयोगकर्म, समवदानकर्म और अध:कर्मका अतीत और वर्तमान स्पर्शन सब लोक है। विकलेन्द्रियोंके उक्त सब पदोंका स्पर्शन पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्तकोंके समान है । पंचेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय पर्याप्तकोंके प्रयोगकर्म और समवदान कर्मका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । अतीत स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह भाग प्रमाण और सब लोक प्रमाण है । केवलज्ञानियोंकी अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण, लोकके असंख्यान बहुभाग प्रमाण और सब लोक प्रमाण स्पर्शन है। अधःकर्मका अतीत और For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org.
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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