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________________ ५. ४ ३१ ) कम्माणुओगद्दारे पओअकम्मादीणं फोसणपरूवणा मदीद वट्टमाणेण लोगस्स असंखेज्जदिभागो असंखेज्जा वा भागा सव्वलोगो वा । किरियाकम्मस्सर वट्ट माणेण लोगस्त असंखेज्जदिभागो। अदीदेण अट्ठ चोद्दस भागा वा देसूणा । पचिदियअपज्जत्ताणं पंचिदियतिरिक्खअपज्जत्तभंगो। कायाणुवादेण पुढवि-आउ-तेउ-वाउ-वणप्फदीणं एदेसि बादराणं बादरअपज्जत्तार्ण बादरणिगोदरज्जत्तापज्जतागं पंचण्णं कायाणं सुहमपज्जतापज्जतागं च पओअकम्म-समोदाणकम्म-आधाकम्माणमदीद-वट्टमाणेण सव्वलोगो। बादरपुढविबादरआउ-बादरतेउ-बादरवाउ-बादरवणप्फविपत्तेयसरीरपज्जत्ताणं तसअपज्जत्ताणं च पंचिदिय*पज्जत्तभंगो । णवरि बादरवाउपज्जत्ताणं वट्टमाणेण लोगस्स संखेज्जदिभागो। तसदोणि पंचिदियदुगभंगो। जोगाणुवादेण पंचमणजोगि-पंचवचिजोगीणं पंचिदियपज्जत्तभंगो। णवरि केवलिसमग्घादो पत्थि। कायजोगीणमोघ ओरालियकायजोगीण खेत्तभंगो। णवरि किरियाकम्मरस अदीदेण छ चोइस भागा देसूणा। ओरालियमिस्सजोगीणं खेत्तभंगो। वेउवियकायजोगीसु सव्वपदाणं वट्टमाणेण खेत्तभंगो। अदीदेण अट्ठ तेरह चोद्दसभागा वा देसूणा। वर्तमान सर्शन सब लोकप्रमाण है। ईर्यापथकर्म और तपःकर्मका अतीत और वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण, लोकके असंख्यात बहुभागप्रमाण और सब लोकप्रमाण है। क्रियाकर्मकी अपेक्षा वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है । अतीत स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण है पंचेन्द्रिय अपर्याप्तकोंके वहां सम्भव पदोंका स्पर्शन पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्तकोंके समान है। ___ कायमार्गणाके अनुवादसे पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक जीवोंके तथा इनके बादर और बादर अपर्याप्त जीवोंके तथा बादर निगोद और उनके पर्याप्त अपर्याप्त जीवोंके तथा पांचों स्थावरकायिक सूक्ष्म और उनके पर्याप्त और अपर्याप्त जीवोंके प्रयोगकर्म, समवदानकर्म और अधःकर्मका अतीत और वर्तमानकालीन स्पर्शन सब लोकप्रमाण है । बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त, बादर जलकायिक पर्याप्त, बादर अग्निकायिक पर्याप्त और बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्त तथा त्रस अपर्याप्त जीवोंके यहां सम्भव पदोंका स्पर्शन पंचेन्द्रिय अपर्याप्तकोंके समान है। इतनी विशेषता है कि बादर वायुकायिक पर्याप्तकोंके वर्तमान स्पर्शन लोकके संख्यातवें भागप्रमाण है। त्रसद्विकके सब पदोंका स्पर्शन पंचेन्द्रियद्विकके समान है। योगमार्गणाके अनुवादसे पांचों मनोयोगी और पांचों वचनयोगी जीवोंके सब पदोंका स्पर्शन पंचेन्द्रिय पर्याप्तकोंके समान है। इतनी विशेषता है कि इन योगोंके रहते हुए केवलिसमुद्वात नहीं होता। काययोगी जीवोंके सब पदोंका स्पर्शन ओघके समान है । औदारिककाययोगियोंके सब पदोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। इतनी विशेषता है कि इनके क्रियाकमका अतीत स्पर्शन कुछ कम छह बटे चौदह भाग प्रमाण है । औदारिकमिश्रकाययोगी जीवोंके वहां संभव सब पदोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। वैक्रियिककाययोगी जीवोंमें सब पदोंका वर्तमानकालीन ४ अ-आ-प्रत्योः । किरियाकम्मं ' इति पाठ: 1 *ताप्रती । तसअपजतागं च पंचिदियअपज्जत्तागं च पंचिदिय ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001812
Book TitleShatkhandagama Pustak 13
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1993
Total Pages458
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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