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८४ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
( ५, ४, २६. कुणमाणो देसूणपुवकोडि विहरिय सजोगिजिणो अंतोमुत्तावसेसे आउए दंडकवाडपदरलोगपूरणाणि करेदि । तत्थ जं पढमसमए देसूणचोद्दसरज्जुउस्सेहं सगविक्खंभपमाणवट्टपरिवेदमप्पाणं कादण द्विदीए असंखेज्जे भागे अणुभागस्स अणते भागे घादेदूण चेदि तं दंडं णाम । विदियसमए पुवावरेण वादवलयवज्जियलोगागासं सव्वं पि सगदेहविक्खंभेण वाविय सेसद्विदिअणुभागाणं जहाकमेण असंखेज्ज-अणते भागे घादिदूण जमवट्ठाणं तं कवाडं गाम । तदियसमए वादवलयं वज्जिय सव्वलोगागासं सगजीवपदेसेहि विसप्पिदूम सेसटिदिअणुभागाणं कमेण असंखेज्जे भागे अणते भागे च घादेदूण जमवट्ठाणं तं पदरं णाम। च उत्थसमए सव्वलोगागासमावरिय सेसढिदिअणुभागागमसंखेज्जे भागे अणंते भागे च घादिय जमवढाणं तं लोगपूरणं णाम । संपहि एत्थ सेस द्विदिपमाणमंतोमुत्तो संखेज्जगुणमाउआदो। एत्तो प्पहुडि उरि सम्वद्विदिखंडयाणि अणुभागखंडयाणि च अंतोमुहुतेग घादेदि । द्विदिखंडयस्स आयामो अंतोमुत्तं अणुभागखंडयपमाणं पुण सेसअणुभागस्स अणंता भागा। एदेण कमेण अंतोमुहुत्तं गंतूण जोगणिरोहं करेदि । को जोगणिरोहो? जोगविणासो।तं जहा-एतो अंतोमुत्तं गंतूण बादरकायजोगेण बादरमणजोगं गिरंभदि। तदो अंतोमहत्तण बादरकायजोगेण बादरवचिजोगं णिरुभदि । तदो अंतोमुहुत्तेग बादरकायजोगेग बादरउस्सासगिस्सासं गिरंभदि। तदो अंतोमुत्तेण काल शेष रहने पर दण्ड, कपाट, प्रतर और लोकपूरण समुद्धात करते हैं। उसमें जो प्रथम समय में कुछ कम चौदह राजु उत्सेध रूप और अपने विष्कंभप्रमाण गोलपरिवेदरूप आत्म प्रदेश कर स्थितिके असंख्यात बहुभागका और अनुभागके अनन्त बहुभागका घात कर स्थित रहते हैं, उसका नाम दण्ड-समुद्धात है। दूसरे समय में पूर्व और पश्चिमकी ओरसे वातवलयके सिवाय पूरे लोकाकाशको अपने देहके विस्तारद्वारा व्याप्त कर शेष स्थिति और अनुभागका क्रमसे असंख्यात बहुभाग और अनन्त बहुभागका घात कर जो अवस्थान होता है वह कपाट समुद्धात है। तीसरे समय में वातवलयके सिवाय पूरे लोकाकाशको अपने जोवप्रदेशोंके द्वारा व्याप्त कर शेष स्थिति और अनुभागका क्रमसे असंख्यात बहुभाग और अनन्त बहुभागका घात कर जो अवस्थान होता है वह प्रतर-समुद्धात है। चौथे समय में सब लोकाकाशको व्याप्त कर शेष स्थिति और अनभागका क्रमसे असंख्यात बहुभाग और अनन्त बहुभागका घात कर जो अवस्थान होता है यह लोकपूरण समुद्धात है। अब यहां शेष स्थिति का प्रमाण अन्तर्मुहूर्त है जो कि आयु के प्रमाणसे संख्यातगुणा है। यहांसे लेकर आगे सब स्थितिकाण्डक और अनुभागकाण्डकोंको अन्तर्मुहूर्तके दारा घातता है। स्थिति काण्डकका आयाम अन्तर्महर्त है और अनभागकाण्डकका प्रमाण शेष अनुभागके अनन्त बहुभाग है । इस क्रमसे अन्तर्मुहुर्त काल जाने पर योगनिरोध करता है।
शंका- योगनिरोध किसे कहते हैं ? समाधान- योगोंके विनाशकी योगनिरोध संज्ञा है । यथा
यहां अन्तर्मुहुर्त काल बिताकर बादर काययोगके द्वारा बादर मनोयोगका निरोध करता है। फिर अन्तर्मुहूतमें बादर काययोगके द्वारा बादर वचनयोगका निरोध करता है। फिर अन्तर्मुहूर्तमें बादर काययोगके द्वारा बादर उच्छवास निश्वासका निरोध करता है। फिर अन्तर्महर्त में वादर
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