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११३३] हिन्दी-सार
३३५ प्रकार अकेला तन्तु पटके द्वारा होनेवाली अर्थक्रिया नहीं कर सकता वैसे ही निरपेक्ष नय सम्यग्ज्ञानोत्पत्ति नहीं कर सकते। तन्तु तन्तुसाध्य अर्थक्रिया भी अपने अंशुओंकी अपेक्षा रखकर ही कर सकता है। यदि तन्तुओंमें शक्तिकी अपेक्षा पट कार्यकी संभावना है तो निरपेक्ष नयोंमें भी शक्तयपेक्षया सम्यग्ज्ञानोत्पत्तिकी संभावना है ही।
इस अध्यायमें ज्ञान दर्शन तत्त्व नयोंके लक्षण और ज्ञानकी प्रमाणता आदिका निरूपण किया गया है।
प्रथम अध्याय समाप्त
लघुहव्व नृपतिके वर अर्थात् ज्येष्ठ या श्रेष्ठ पुत्र, निखिल विद्वज्जनोंके द्वारा जिनकी विद्याका लोहा माना जाता है, जो सज्जन पुरुषोंके हृदयोंको आह्लादित करनेवाले हैं वे अकलङ्क ब्रह्मा जयशील हैं।
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