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________________ पैसे, प्रतिष्ठा, कीर्ति, मान वाले बहुत मिलेंगे, मगर मन को सदा प्रसन्न रखने वाले बहुत कम है। हाँ कृत्रिम आडंबर वाले, कामी लोग भी ऐसे ही बोलते है कि “संसार असार है'' अत : कहा है "वैराग्यरंग: परवंचनाय धर्मोपदेशो जन रंजनाय। वादाय विद्याऽध्ययनं च मेऽभूत क्रियब्रुवे हास्यकरं स्वमीश।" ऐसे लोग अन्य लोगों का मनोरंजन करने में सहायक बनते हैं, उनके लिए कृत्रिमता, आडंबर और दूसरों की सहायता, इन तीनों बातों से प्रसिद्धि आसान बनती है। ऐसे लोगों के छोटे छोटे काम पैसे के कारण बडे बन जाते हैं। मुँह पर नकली भाव बताते हैं, ऐसे लोग बाहर से त्यागी दिखते हैं, यह इनकी बाह्य चेष्टा है, इससे लोगों का मनोरंजन होता है, मगर अंदर से आत्मा तो कुटिल व मलिन ही होती है। ऐसे लोग बाह्य आडंबरों का खूब प्रयोग करते हैं। शिष्यों की टोली, प्रशंसा करनेवाले भक्तों के झुंड, पैसे खर्च करके अखबारो में खूब प्रचार करना इत्यादि इनके प्रपंच है। कृत्रिमता, आडंबर तथा पैसे खर्च करके इश्तिहार छपवाना इनके लक्षण होते हैं। जगत में ऐसे लोगों की प्रथम तो वाहवाह होती है परंतु फिर रह जाती है, हवा-हवा। यह सब करने से मनोरंजन तो होता है, परंतु मूल्यांकन करने की शक्ति आत्मा में होती है, आत्मा ऐसे बाह्य आडंबरो से नहीं अपित्तु सत्य आचरण से प्रसन्न होती है। बहुत से लोग काम करके अपनी प्रतिष्ठा या प्रशंसा करवाते हैं, जब कि शुद्ध भाव रखने वाले लोगों की भी प्रशंसा तो होती है, मगर उन्हें इसकी लालसा या ऐषणा नहीं रहती। नाम मिले तो उसे रोका नहीं जा सकता, परंतु नामना की स्पृहा को तो रोक ही सकते हैं। फूल के पास आकर भ्रमर गुंजन करता है, इसमें फूल का दोष नहीं, यह गुंजन स्वाभाविक है। वैसे ही इन्सान यदि लायक है, और उसे प्रशंसा मिले तो ठीक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001809
Book TitleDharma Jivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherDivine Knowledge Society
Publication Year2007
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size11 MB
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