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अशठ यानि सुरीली संवादिता
बहुत से लोग कहते हैं कि हमें मोक्ष स्वर्ग या निर्वाण याहिए, परंतु कहने मात्र से प्राप्त नहीं हो सकता, उसके लिए सद्गुण रूपी सोपान चढ़ने पडते हैं। इन सोपानों को चढ़ते हुए क्रमशः आनंद की प्राप्ति होने लगती है, सद्गुणों रूपी मुक्ति पाकर मोक्षरूपी साध्य की प्राप्ति कर सकते हैं । शठ व्यक्ति जो कुछ करता है, उसके पीछे हृदय का कलुष छुपा रहता है, उसकी आँखों में चेष्टाओं में, हावभाव में माया छलकती है । उसका हास्य और रूदन दोनों ही नकली होते हैं, उनकी कथनी और करनी में बहुत अन्तर होता है । हास्य और रूदन दोनों में ही स्वार्थ की प्रधानता रहती है, वह रोता भी इसलिए है कि दूसरों को द्रवित कर अपना स्वार्थ सिद्ध कर सके। ऐसा मायावी इन्सान कुछ लोगों की शाबाशी प्राप्त करके अपनी जीत समझता है, परंतु सच तो यह है कि वह अन्दर से हारा हुआ है ।
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जिसकी करनी माया रहित, क्रूरता रहित होती है, वही सच्ची मानवता कहलाती है। पूज्य उपाध्यायजी श्री यशोविजयजी महाराज फरमाते हैं कि कोई दिगम्बर रहे, वस्त्रधारण न करे, सूखा अन्न खाएँ, तपस्या करे, परंतु यदि उसका मन मायासे आच्छादित है, तो उसे असंख्य जन्म धारण करने पडेंगे। शठ व्यक्ति अपने आसपास माया जाल बिछाकर दूसरों को ठगता है, ऐसे व्यक्ति का कोई विश्वास नहीं करता। इस जीवन में सबसे बडी उपलब्धि विश्वासपात्र होना है, जो विश्वासपात्र नहीं है, उसके पास सबकुछ हो हुए
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