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________________ ७२ भी, कुछ भी न होने के बराबर है, उसकी आराधना में भी दंभ है । तप में भी कपट है, वह सोचता है, सब लोगों को उसके पीछे रहना चाहिए, इस तरह छल, कपट, प्रपंच करने वाला कभी न कभी जरूर नीचे गिरता है । अशठ जीवन यानि क्या ? जैसा मन में वैसा वचन में, जैसा वचन में वैसा क्रिया में, तीनों में सुसंवादिता होनी चाहिए, सामंजस्य होना चाहिए। यथा चितं तथा वाचो, यथा वाचो तथा क्रियाः । धन्यास्ते त्रितयं येषां, विसंवादो न विद्यते । । बालक प्यारा क्यों लगता है ? क्यों कि वह दंभ रहित है, मन, वचन, काया तीनों में संवादिता है । बालक बडों का गुरू है। यदि गीत के सुर, वाद्य तथा ताल का सुमेल नहीं है तो संगीत कैसे प्रकट होगा ? इन तीनों का सामंजस्य यानि संगीत । आज तो हमारी आत्मा अलग गाती है, वाणी रूपी तबला अलग बजता है और क्रियारूपी पेटी अलग बजती है, जहाँ मन, वचन, क्रिया में विसंगतियां हों वहाँ सफलता कैसे मिल सकती है ? पहले के जमाने में घर के लोगों में ऐसी संवादिता थी, तब लोग सुखी थे। आज तो घर के लोगों के पास भी अपनी बात को सच सिद्ध करने के लिए सोगंध खाने पडते हैं । फिर भी लोग आधी बात ही सच मानते हैं, क्यों कि माया, झूठ बहुत बढ़ गये हैं । अभया रानी ने सुदर्शन शेठ को फंसाया, सुदर्शन शेठ ने अकार्य करने पर संयम रखा, तब रानी ने शेठ पर बलात्कार का आरोप लगाया । चिल्लाचिल्ला कर गाँव के लोगों को इकट्ठा किया, लोग रानी के पक्ष में आ गये । शेठ की पत्नी मनोरमा के कानों तक बात पहुंची । मनोरमा को अपने पति पर पूर्ण श्रद्धा थी, विश्वास था कि उसके पति पवित्र हैं, किसी भी नारी के रूप पर नजर तक नहीं करते । मनोरमा ने प्रार्थना की कि, "हे दिव्य तत्त्व ! यदि हमारा शील और दाम्पत्य जीवन शुद्ध और पवित्र हों तो आप प्रसन्न हों, प्रकाश की प्रतीक्षा में, मैं अन्नजल का त्याग करती हूं।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001809
Book TitleDharma Jivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherDivine Knowledge Society
Publication Year2007
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size11 MB
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