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अक्रूर
उपर चढ़ने के लिए सीढ़ियों की जरूरत रहती है वैसे ही धर्मरूपी शिखर पर चढ़ने के लिए भी कुछ सीढ़ियों की जरूरत होती है। यदि एक एक सीढ़ि भी चढ़े, तब भी चढ़ने वाला एक न एक दिन ऐसे शिखर को सर कर लेगा जो सभी शिखरों में श्रेष्ठ शिखर है अर्थात् धर्म शिखर । हिमगिरि के उत्तुंग शिखर को सर कर के तेनसिंह ने पराक्रम की पराकाष्ठा दिखाई, वैसे ही जो धर्म शिखर पर पहुंचता है, वह अपने जीवन में अध्यात्म की पराकाष्टा दिखाता है।
___ हम सब धर्म शिखर के पथिक है। यदि यह न होता तो शायद हम यहाँ इकट्ठे नहीं होते। हम सब धर्म शिखर के प्रवास की भावना, इच्छा तथा कामना रखते हैं, यह प्यास हम सबकी आँखो में झलकती है।
साधक के लिए धर्मप्रवास कठिन नहीं है। जो धर्म को कलिष्ट कहते हैं, वह धर्म नहीं हो सकता, ऐसे लोग धर्म के नाम पर कुछ और ही बेचने निकले हैं। धर्म तो गाँव का गरीब भी समझ सकता है। धर्म की सीढ़ियां ऊंची भी नहीं है, संकडी भी नहीं है, यह सीढ़िया हैं एक, एक सद्गुण। जिसके जीवन में हेतु ध्येय, सद्गुण नहीं, वह कहीं भी नहीं पहुंच सकता।
__ हमने अब तक क्षुद्रता का त्याग, संपूर्ण अंगोपांग, प्रकृति-सौम्यत्व और लोकप्रियता, इन चार बातों पर विचार कर लिया, अब हम पांचवें गुण पर
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