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________________ ६० चर्चा करेंगे। पिछले सद्गुणों को भूल न जाएँ, इसके लिए पुनरावर्तन करना चाहिए जिसे स्वाध्याय कहते है । इन गुणों को जानने से चिंतन मनन करने से जीवन में कितनी शांति मिली ? कितना अनुभव किया ? जितना आचरण होगा, उतनी हमारी विजय है, मात्र सुनने से कोई फायदा नहीं होता। डॉक्टर की दी हुई दवाई का सेवन करने से रोग दूर जाता है, इसी तरह सद्गुणों को जीवन में उतारने से ही भव रोग जाएगा। यह पाँचवी सीढ़ि यानि क्रूरता का त्याग, जो स्वयं शांत है, वही दूसरों को शांति प्रदान कर सकता है, बर्फ के पास बैठने से ठंडक मिलती है, भट्ठी के पास बैठने से तो गर्मी का ही अनुभव होगा। इसीलिए ज्ञानियों ने कहा है, जिस व्यक्ति ने बोध प्राप्त किया है, और दूसरों को बोध प्रदान करता है वही सच्चा महापुरूष है। सच्चा धार्मिक कैसा होता है ? जिसमें चंदन सी शीतलता, शांति तथा सौम्यता हो । जहाँ जाए शीतलता प्रदान करे । क्रूरता नहीं, यानि क्या ? जीवन में किसी प्रकार की क्लिष्टता नहीं, अपितु कोमलता होनी चाहिए। जिसका हृदय कोमल हो, दूसरों का सुख, सफलता देखकर खुश हो वही धार्मिक है कई लोग दूसरों के सुख को देखकर निराश होते है, उनकी मनोवृत्ति कलुषित है, वे धर्म करने योग्य नहीं हैं। जो हृदय से कठोर, क्रूर होते हैं वे कई बार हिंसक पशुओं से भी अधिक क्रूर या निर्दयी बन जाते हैं और दूसरों को किसी भी प्रकार का नुकसान पहुंचा सकते हैं । कहते हैं कि सिंह या सर्प सामने से आ रहे हो तो सावधानी बरतने से उनसे बचा जा सकता है, परंतु जो बाहर से सौम्यता दिखाकर अंदर से क्रूरता का आचरण करते हैं, उनसे बचना मुश्किल होता है । अत: ज्ञानियों ने फरमाया है "मधु तिष्ठति जिह्याग्रे, हृदये तु हलाहलम्।” मुँह से मानो शहद टपक रहा हों, ऐसा मीठा बोलने वालों के हृदय में भी लेशमात्र दया नहीं होती, ऐसा देखा गया है। जिसका हृदय मोम जैसा मुलायम मक्खन जैसा कोमल हो वही सच्चा धार्मिक । एक प्रसंग याद आ रहा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001809
Book TitleDharma Jivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherDivine Knowledge Society
Publication Year2007
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size11 MB
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