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________________ ५५ है, पर शाम को इन्सान चला जाता है, हृदय रोग के हमले में, फिर ऐसे देह के जोर पर गर्व करना भी कहाँ तक उचित है ? इन तीनों से जो सर्वाधिक शक्तिशाली है, वह हमारे सद्गुण हैं । सत्ता, शरीर बल शायद कल को न रहें, परंतु सद्गुणों का खजाना होगा तो सदा रहेगा। इसलिए इन तीन चपल शक्तियों के सामने हमें तीन सद्गुणों की शाश्वत शक्तियों को धारण करने को कहा गया है, वो तीन है- दान, विनय और शील। ये तीनों गुण जिस धर्मात्मा में होते है, वह मरने के बाद भी अमर हो जाता है । " मरना है भला उसका, जो अपने लिए जिए, जीते हैं वो, जो मर चुके इन्सान के लिए।" स्मृति सदा व्यक्ति के सद्गुणों तथा उसके सहकार्यो से रहती है, जो दूसरों की सेवा करते हुए, या औरों की खातिर मरते हैं, उनकी लोकप्रियता सदा रहती है। संपत्ति, सत्ता और शरीर को काल ग्रसित कर ले, उसके पहले इनका सदुपयोग कर लेना चाहिए। अपना तथा अपने साधनों का उदारतापूर्वक सदुपयोग करके जाएंगे तो लोग भी कहेंगे, “दिल का बादशाह था । " ऐसे लोगों के लिए ही समाज आंसू बहाता है । हंसता हुआ वही इन्सान जा सकता है, जिसने सदा दिया है, जिसने दूसरों को लूटा है, वह हँसता हुआ क्या जाएगा भला ? चित्त की उदारता के पश्चात् हम नम्रता गुण पर विचार करेंगे । विजय प्राप्त होने पर गर्व करने के बजाय, कुदरत का तथा मित्रों का, स्वजनों का उपकार मानो, उन्हें श्रेय दो । पर अक्सर यह जगत की रीति है कि अच्छा होता है तो व्यक्ति स्वयं श्रेय लेता है, “मैंने किया ।" बुरा होता है तो दूसरों पर आरोप लगाता है। यह, "मैं और तुम " जीवन में दीवार खड़ी करते हैं । प्रशंसा सबको प्रिय है, यह हमारी आंतरिक वृत्ति है। अच्छे का श्रेय स्वयं लेकर दोष की टोकरी भगवान के सर मढ़ता है, इस तरह ईश्वर का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001809
Book TitleDharma Jivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherDivine Knowledge Society
Publication Year2007
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size11 MB
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