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शाश्वत क्या?
हम कुछ दिनों से लोकप्रियता के गुणों पर विचार कर रहे हैं, और उससे संबंधित तीन गुण-दान, विनय और शील पर चर्चा चल रही है। ___ आज यदि मान, सत्कार मिलता है, तो यह नहीं समझना चाहिए कि यह चिर स्थायी रहेगा। प्रशंसा, खुशामद या अन्य विशेषणों से भ्रमित होकर भविष्य की मीनारों की रचना करना, समझदारी नहीं है।
सच्ची लोकप्रियता तो स्वशक्ति में से आनी चाहिए। कौन सी शक्ति? पैसों की? नहीं, लक्ष्मी तो चंचल है, आज है तो कल नहीं। गतजन्मों के सुकृत्य होंगे, तब तक यह रहेगी, यह पानी पर चलती हुई नौका के समान है। अपने जीवनसरोवर में लक्ष्मी नौका के समान है चंचल है, उसे बांधकर नहीं रख सकते।
तो फिर दूसरी शक्ति कौन सी है? सत्ता, यह चाहें तो उपर चढ़ा सकती है, चाहें तो नीचे गिरा सकती है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह सत्ता हमारे हाथों में नहीं है, पुण्य पर निर्भर है। मुसोलिनी और हिटलर जैसों की सत्ता भी पलभर में खत्म हो गई और उन्हें मौत भी अच्छी नसीब नहीं हुई। यह इतिहास सर्वविदित है।
तीसरी शक्ति शरीर बल है। इन्सान तब तक जोर कर सकता है, जब तक निरोगी है। रोग के आते ही नि:सहाय बन जाता है। कई बार सुबह
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