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________________ करने से ही जीवन सुंदर बनता है । आज की शिक्षा में यह अत्यंत जरूरी है, प्रोफेसर बोलते रहते हैं, छात्र-छात्राएँ उनकी मजाक करते रहते है, ऐसी विद्या आशीर्वाद रूप नहीं बल्कि अभिशाप रूप बन जाती है । ५३ राजा बिंबिसार ने चांडाल के पास से विद्या ग्रहण करने का बहुत प्रयास किया, पर न प्राप्त कर सके। उन्होंने अभयकुमार से इसका कारण पूछा, उन्होंने कहा “महाराज बर्तन में पानी भरने के लिए उसे कुएं में डालना पडता है, बर्तन को टेढ़ा करना पडता है, नमना पडता है, तभी उसमें पानी भरता है । इसी प्रकार ज्ञान प्राप्ति के लिए विनय द्वारा नमन करना पडता है | आप अपने से ऊंचे स्थान पर चांडाल को बिठाईये, और आप उसके स्थान पर बैठिए ।" जब तक हममें लघुता, नम्रता नहीं आती, तब तक हमें वस्तु, स्वरूप की जानकारी तो भले प्राप्त हो सकती है, पर आंतरिक ज्ञान हम नहीं पा सकते। ज्ञान तो अंतर की खोज है । अतः ज्ञानियों ने फरमाया है, जो अक्षर के रहस्य को, ज्ञान को समझता है, उसी का जीवन अक्षर - अमर बनता है, केवल कागज पर लिखे अक्षरों की ज्यादा कीमत नहीं होती । और यह सब विनय बिना नहीं मिल सकता । आखिरकार मगध के महान् सम्राट् बिंबिसार चांडाल के स्थान पर बैठे, तब ज्ञान की प्राप्ति हुई । जो मोम की भांति नर्म बनकर पिघलता है, वही समाज में अमर बनता है । हृदय की गहराईयों से जगी हुई नम्रता से समाज भी वश में हो सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001809
Book TitleDharma Jivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherDivine Knowledge Society
Publication Year2007
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size11 MB
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