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वश क्यों हुआ? यह पूछना चाहिए। शांत चित्त से विचार करेंगे तब समझ में आएगा कि क्रोध तो विसंवाद है, इसमें इन्सान पागल हो जाता है, वह क्या बोलता है, उसे स्वयं नहीं पता होता। समझदार इन्सान वही है, जो ऐसे समय में चुप रहे।
पुराने समयमें समझदार लोग घर में एक खंड रखते थे जिसका नाम होता था 'शान्तिगृह'। उसमें शांति और संवादिता के प्रतीक रखे जाते थे। जब किसी को क्रोध आता, उस खंड में जाकर बैठता, उन प्रतीकों को देखकर क्रोध स्वतः शान्त हो जाता।
मित्रों का चुनाव भी विवेकपूर्वक करना चाहिए, बुरी संगत इन्सान को बेआबरू कर सकती है, संकट के समय में सही प्रेरणा देकर काम आएं, ऐसे लोगों की ही मित्रता करनी चाहिए। - विचारों का जिस तरह मन पर अच्छा-बुरा असर होता है, वैसे ही अच्छे पुस्तक, अच्छे मित्र, अच्छे गीत, अच्छे चित्रों का यानि की सम्पूर्ण अच्छे वातावरण का मन पर असर होता है।
स्वस्थ जीवन बनाने के लिए सर्वप्रथम मन में से राग, द्वेष रूपी कचरा बाहर फेंकना होगा। सौम्य प्रकृति का व्यक्ति कभी किसी का कुछ भी नहीं बिगाड़ता। खानदान एवं कुल के अच्छे संस्कार तथा अच्छे गुण हमें बुरा बनने सें, बुरा करने से बचाते हैं। अच्छे संस्कारों से युक्त कुल महान पुण्योदय से प्राप्त होता है।
चलो हम भी मानसिक बल एकत्र कर, अपने संस्कारो द्वारा चंदन सी शीतलता, सुगंध एवं शांत सौम्यत्व की सुरभि सर्वत्र फैलाए।
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