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________________ ११ जीवन परिवर्तन जो धार्मिक बनना चाहता है, उसके पास सद्गुणों की संपत्ति होनी आवश्यक है। गुण हों और ख्याति प्राप्त हो वह तो ठीक है, बाह्य आडम्बरों से सच्ची ख्याति प्राप्त नहीं हो सकती, सफलता की सीढ़ी चढ़ने के लिए सद्गुण तो प्रथम पायदान है। इस काया रूपी मिट्टी के पुतले में सद्गुण तो सोने के समान है। आज तक जिसे हमने धूल माना है, वह सुंदर से सुंदर आंतरिक तत्त्व है, इन सद्गुणों की प्राप्ति द्वारा हम काया रूपी मिट्टी को सोने के समान बना सकते है । इस संसार का बाह्य खजाना व्यर्थ है, एक दिन उसे छोडकर जाना है। हमारे भीतर परमात्मा तत्त्व रूपी खजाना मौजूद है, उसकी ज्योति प्रगट करनी है। जीवन अंधकारमय लगता है, क्यों कि उस ज्योति को हमने पहचाना नहीं है, जलाया नहीं है, उसके प्रगट होते ही, इसलोक तथा परलोक में दिव्य ज्योति व्याप्त हो जाएगी। इस सफलता की प्राप्ति के लिए गंभीरता, तुच्छता का त्याग, तंदुरस्त शरीर, संपूर्ण अंगोपांग, राग द्वेष से परे, स्वभाव की निर्मलता वगैरह गुणों को आवश्यक माना गया है। Jain Education International व्यक्ति जब अपने स्वभाव को समझने लगता है, तब धीरे-धीरे उसके स्वभाव में परिवर्तन आने लगता है। वैसे तो जब किसी को सन्निपात उठता है, तब ज्ञानी और गंवार दोनों की स्थिति समान होती है । वैसे ही जब काम, ३५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001809
Book TitleDharma Jivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherDivine Knowledge Society
Publication Year2007
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size11 MB
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