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________________ क्षुद्रता का त्याग क्षुद्रता का निषेध और विधेय हमें समझना है, साथ ही गंभीरता का भी। विश्व में कोई स्थान ऐसा नहीं है जो खाली हों, इसलिए क्षुद्रता रूपी कौए को त्यागकर गंभीरतारूपी राजहंस पर सवार होना है। गंभीर व्यक्ति ही दुनिया में मान प्राप्त करता है, बाकी तो हर छोटी छोटी बातों में क्लेश करने वाले लोग उन्तीस दिन का प्रेम एक ही दिन में गंवा बैठते हैं। क्षुद्र व्यक्ति हर प्रसंग में दुःखी होता रहता है। दूसरों की भूलों को नजरअंदाज करने वाला व्यक्ति ही जीवन में प्रगति कर सकता है। हम कहीं गये, किसीने सत्कार नहीं किया, तो मन, स्वभाव बिगड जाता है, क्रोध आने लगता है, मन गमगीन हो जाता है, परिणाम यह आता है की मन का क्षेत्र संकुचित बनता जाता है। आनंद को समाने के लिए हृदयस्थान - पात्र, विशाल होने चाहिए। इसके लिए “भूल जाओ और क्षमा कर दो।" (Forget and Forgive) यह मंत्र जीवन में बहुत सहायक बन सकता है, पर कब? जब हृदय में विशालता हों। यदि राग, द्वेष की गांठो से मन ग्रसित है, तो मन में आनंद के लिए स्थान कहाँ ? इन्सान स्वयं ही दु:ख के बीज बोता है और फिर दुःखी होता है। अधिक खाने से बदहजमी होती है, वैसे ही गंभीरता न अपनाकर क्षुद्रता भरा स्वभाव रखता है, फिर दुखी होता है। इसलिए कहा गया है कि, २२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001809
Book TitleDharma Jivan ka Utkarsh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChitrabhanu
PublisherDivine Knowledge Society
Publication Year2007
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size11 MB
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